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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य विहार किया, च = और, एकमासवशिष्टायुः = एक माह मात्र आयु शेष, ज्ञात्वा = जानकर, तद्ध्वनि = दिव्यध्वनि को. संहृत्य -- समेटकर-रोककर, सम्मेदपर्वत = सम्मेदपर्वत को, गत्वा = जाकर, विशदध्यानतत्परः = विशद-निर्मल ध्यान में लगे हुये, सहस्रमुनिसंयुतः = एक हजार मुनिराजों से युक्त, (असौ - वह प्रभ), प्रभासकटे = प्रभास नामक कट
पर. स्थितवान् = स्थित हो गये। श्लोकार्थ - जगत् के प्रभ तीर्थक्कर शांतिनाथ ने निकटवर्ती सभी देशा
में विहार किया और एक माह आयु शेष जानकर, दिव्यध्वनि को रोककर और सम्मेदपर्वत पर जाकर निर्मल ज्ञान संयुक्त वह प्रभु एक हजार मुनियों के साथ प्रभासकूट पर स्थित
हो गये। स्थित्वैकमासं तत्रासौ प्रतिमायोगयान्प्रभुः ।
वैशाखशुक्लप्रतिपद्याप सिद्धपदं मुदा ।।५०।। अन्वयार्थ - तत्र = उस प्रभासकूट पर, एकमासं = एकमास तक, स्थित्वा
= छहर कर, प्रतिमायोगवान् = प्रतिमायोग धारण किये, असौ - उन. प्रभुः = भगवान ने, मुदा = प्रसन्नता से, वैशाखशुक्लप्रतिपदि = वैशाखशुक्ला प्रतिपदा के दिन,
सिद्धपदं :- सिद्धपद को, आप = प्राप्त किया। श्लोकार्थ - उस प्रभासकूट पर एक मास तक स्थित रहकर प्रतिमायोग
धारण किये हुये उन भगवान् ने प्रसन्नता से वैशाख सुदी
प्रति पदा के दिन सिद्धपद को प्राप्त किया। ततश्चैककोटिकोटीनां नवकोट्यस्ततः परम् । नवलक्षा सहस्राणि नवैव तदनन्तरम् ||५१।। सैकोनशतरन्ध्रोक्ता शतानीत्येव संख्यया ।
प्रभासकूटान्निर्वाणपदं भव्याः प्रपेदिरे ||५२।। अन्वयार्थ - ततश्च = और इसके बाद, एककोटिकोटीनां = एक
कोडाकोड़ी, नवकोट्यः = नौ करोड़, ततः परं = उससे आगे, नवलक्षाः = नौ लाख, नव एव = नौ ही, सहस्राणि = हजार.