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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य सबके लिये कठिन, महोग्रं = अत्यधिक उग्र-भीषण, तपः = तपश्चरण को, आरंभे = आरंभ किया। श्लोकार्थ – उसके बाद बेला अर्थात् एक दिन के उपवास की प्रति वाले उन मुनिराज ने तपोवन को प्राप्त करके मुक्ति के लिये किन्तु सभी के लिये कठिन और अत्यधिक उग्न-भीषण तपश्चरण प्रारंभ कर दिया। तपो नानाप्रदेशेषु कृत्या मौनधरो विभुः । दग्ध्यासौ निजकर्माणि शुक्ल ध्यानोग्रवहिनना ।।४३ ।। ततः पौषदशम्यां हि शुक्लायां मुनिवन्दितः । केवलानन्दसन्दोहं केवलज्ञानमाप च ।।४४।। अन्वयार्थ – असौ = उन मौनधरः = मौन धारण करने वाले, विभुः = मुनिराज ने, नानाप्रदेशेषु = अनेक स्थानों पर, तप: - तपश्चरण, कृत्वा - करके. शुक्लध्यानोग्रवहिनना = शुक्लध्यान रूप उग्र अग्नि से, निजकर्माणि = अपने कर्मो को, दग्ध्वा = जलाकर, च = और, ततः = उसके बाद, मुनिवन्दितः = मुनिराजों से वन्दित होते हुये, पौषदशम्यां शुक्लायां = पौष शुक्ला दशमी के दिन, केवलानन्दसन्दोहं = केवल आनंद अर्थात् अनंत सुख के साथ होने वाला, केवलज्ञानं = केवलज्ञान को, आप = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ .- उसके बाद उन मौन व्रतधारी मुनिराज ने अनेक स्थानों पर तपश्चरण करके शुक्लध्यान रूप उग्र अग्नि द्वारा अपने कर्मो को जलाकर और मुनिराजों से वन्दित होते हुये पौष शुक्ला दशमी के दिन अनंत आनंद से संयुक्त केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। तदा शक्रादयो देवाः प्राप्तास्तत्रैव हर्षिताः । कृतस्समवसाररतैरद्भुतो रत्ननिर्मिताः ।।४५।। अन्वयार्थ - तदा = तभी, शक्रादयः = इन्द्र आदि. देवाः = देवजन, हर्षिताः = प्रसन्न होते हुये, तत्रैव = वहीं, प्राप्ता = उपस्थित हुये. तैः = उनके द्वारा, अद्भुतः = अतिशय आश्चर्यकारी.
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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