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अन्वयार्थ
श्लोकार्थ
अन्वयार्थ
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अन्वयार्थ
अथ
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तत्पश्चात्, अयं = इस भुवनाधिपः = राजा ने,
द्वादश
- बारह अनुप्रेक्षाः = अनुप्रेक्षायें, संभाव्य = भाकर, अनूत्तमं = उत्तम, राज्यं = राज्य को नारायणात्मजाय = नारायण
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नामक पुत्र के लिये, ददौ
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सर्वार्थसिद्धिशिविकां समारुह्य ततः प्रभुः ।
ततः =
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देवोपनीतामतुलां जयशब्दपुरस्सरः ।। ३७ ।। ज्येष्ठकृष्णचतुर्थ्यां स सहस्रक्षितिपैः सह । यथोक्तवनमासाद्य दीक्षां जग्राह धर्मवित् ।। ३८ ।। उसके बाद, धर्मविद - धर्म के ज्ञाता. (च = और), जयशब्दपुरस्सरः = जय शब्द जिनके आगे हो रहे हैं ऐसे. सः उस प्रभुः = विरक्त राजा ने देवोपनीतां देवों द्वारा लायी गयी, अतुलां = अनुपम, सर्वार्थसिद्धिशिविकां = सर्वार्थसिद्धिनामक पालकी में, समारुह्य चढ़कर. ज्येष्ठ कृष्णचतुर्थ्यां = जेठ कृष्णा चौथ के दिन, यथोक्तवनं यथायोग्य निर्दिष्ट वन को आसाद्य = प्राप्त करके, सहस्रक्षितिपैः = एक हजार राजाओं के, सह = साथ, = दीक्षा को, जग्राह = ग्रहण कर लिया ।
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दीक्षां
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
तत्पश्चात् इस राजा ने बारह अनुप्रेक्षाओं को अच्छी तरह भाकर - विचारकर अपना उत्तम राज्य पुत्र नारायण को दे
दिया ।
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दे दिया ।
श्लोकार्थ उसके धर्मज्ञ और जय शब्दों से सम्मानित उस विरक्त राजा ने देवों द्वारा लायी गयी. अनुपम सर्वार्थसिद्धि नामक पालकी पर चढकर ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्थी के दिन यथायोग्य वन में जाकर एक हजार राजाओं के साथ मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। मनःपर्ययनामास्योदभूत् बोधश्चतुर्थकः |
तेन विश्वमनोयार्तां ज्ञातुं सर्वामभूत् क्षमः ||३६||
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अस्य = इन मुनिराज के मन:पर्ययनामा मन:पर्ययनामक, चतुर्थकः = चौथा, बोधः = ज्ञान, अभूत् = उत्पन्न हो गया, तेन = उस ज्ञान से, वह), सर्वा = सारी,
(सः