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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = विशेष रूप से, पित्रोः = माता-पिता के लिये, सुखदः = सुख देने वाला, अयं = यह बालक. भूमिपागारे = राजा के घर में, अनिशं = निरन्तर, बालचन्द्र इव = बालचन्द्रमा के
समान, ववृधे = वृद्धि को प्राप्त हुये। श्लोकार्थ - बालावस्था में सभी के लिये विशेषतः माता-पिता के लिये
सुखद यह निरन्तर राजा के घर में बाल चन्द्रमा के समान
वृद्धि को प्राप्त हुये। पञ्चविंशतिसहस्रवर्षाणि व्यतीत्य जगदीश्वरः । कैतकेन निनायासौ कौमार्ये स्मरकोटिमिः ||३१|| पितृणामथ राज्यं प्राप्य चक्रवर्ती बभूव सः ।
चतुर्दशास्य रत्नानि बभूवुः निधयो नव ।।३२।। अन्वयार्थ – असौ = उन जगदीश्वरः = जगत् के स्वामी तीर्थङ्कर
शांतिनाथ ने, पंचविंशतिसहस्रवर्धाणि = पच्चीस हजार वर्ष, व्यतीत्य = बिताकर, स्मरकोटिभिः = करोड़ों कामदेवों या मदनों की अपेक्षा से, कैतकेन = खिले हुये केवड़े के पुष्प समान, कौमार्य = कुमारावस्था में, निनाय = ले जाये गये या पहुँचे। अथ = कुमारावस्था प्राप्त होने पर, सः = वह, पितृणां = पिता के, राज्यं = राज्य को, प्राप्य = प्राप्त करके, चक्रवर्ती = चक्रवर्ती सम्राट्, बभूव = हुये, अस्य = इनके, चतुर्दश == चौदह, रत्नानि = रत्न, नव = नौ, निधयः = निधियां,
बभूवुः = थीं। श्लोकार्थ .. उन जगदीश तीर्थकर शांतिनाथ ने पच्चीस हजार वर्ष
बिताकर करोड़ों की अपेक्षा से खिले हुये केचड़े के समान कुमारावस्था में प्रवेश किया। तत्पश्चात् वह पिता के राज्य को प्राप्तकर चक्रवर्ती सम्राट् बन गये। इनके पास चौदह रत्न और नौ निधियाँ थीं। सर्वशत्रून्वशीकृत्य विजयी स नरेश्वरः । राज्यं बुभोज धर्मेण देवराजसमं विभुः |३३।।