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पञ्चदशः
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नृत्य को, संविधाय = करके तस्य = उन, विश्वपतेः = सभी के स्वामी को, शान्तिनाथाभिधां = शान्तिनाथ नाम, कृत्वा = करके, तथा : और, मातुः - माता के लिये, सादरं - आदर सहित. समर्म्य = देकर, गीर्वाणैः = देवताओं के, सम = साथ, प्रीत्या = प्रीति से. परमोत्सवसंयुतः = परम उत्सव से युक्त होता हुआ. त्रिदशालयं = स्वर्ग को, जगाम = चला
गया। श्लोकार्थ - उस इन्द्र गे सुगन्धित जल से पुनः शिशु प्रभु का अभिषेक
करके और दिव्य आभूषणों से अलङ्कत करके उन प्रमु की खूब वंदना की। उसके बाद इन्द्र शीघ्र ही हस्तिनागपुर आ गया, तथा उसने राजा के आंगन में प्रभु को आरोपित करके उनकी पूजा करके. प्रणाम करके और उनके सामने सभी को शान्ति प्रदान वाला ताण्डव नृत्य किया। फिर सभी के स्वामी उन शिशु प्रभु का नातिना ररकाः, मुर: शिशु को माता के लिये देकर प्रीतिपूर्वक परम उत्सव भनाता हुआ देवताओं
के साथ स्वर्ग को चला गया। लक्षवर्षायुरभवत् स देवो देवतार्चितः ।
चत्वारिंशद्धनुष्कोऽयं ईश्वरो जगतां किल ||२६।। अन्वयार्थ - देवतार्चितः = देवताओं द्वारा पूजित, सः = वह, देवः =
भगवान्, लक्षवर्षायुः = एक लाख वर्ष आयु वाले, अमवत् = थे. अयं - यह जगतां = तीनों लोक के, ईश्वरः = स्वामी, किल - निश्चय ही, चत्वारिंशद्धनुष्कः = चालीस धनुष
प्रमाण, (अगवत् = थे)। श्लोकार्थ - देवताओं द्वारा पूजित उन भगवान की आयु एक लाख वर्ष
और शरीर चालीस धनुष प्रमाण था। सर्वेषां सुखदो बाल्ये पित्रोश्चायं विशेषतः ।
ववृधे भूमिपागारे बालचन्द्र इयानिशम् ।।३०।। अन्वयार्थ – बाल्ये = बाल्यावस्था में, सर्वेषां - सभी के लिये, विशेषतः