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________________ प्रथमा ____३१ श्लोकार्थ - उस पुष्पवाटिका में आकर्षक व सुन्दर स्वर्ण की दीवारों वाला तटभाग सुशोभित होता है, वहाँ चार द्वार हैं जहाँ मङ्गल द्रव्यों का संग्रह भी होता है। तत्प्रतिद्वारकं वे द्वे नाट्यशाले प्रकीर्तिते । ततश्योपवनं दिव्यं ततश्चादभुतनेटिका !::१!! अन्वयार्थ · तत्प्रतिद्वारकं = उस पुष्पवाटिका के प्रत्येक द्वार पर, द्वे द्वे = दो दो, नाट्यशाले = नाट्यशालायें, प्रकीर्तिते = कही गई हैं, ततश्च = और उससे आगे, दिव्यं = देवोपनीत, उपवनं - उद्यान, (भवति = होता है), ततश्च = और उस उपवन से आगे, अद्भुतवेदिका = आश्चर्यकारी वेदी, (भवति = होती श्लोकार्थ - उसके प्रत्येक द्वार पर दो-दो नाट्य शालायें आचार्यों ने प्रकीर्तित की हैं तथा उन नाट्यशालाओं से आगे एक दिव्य उपवन है जिससे आगे एक अद्भुत वेदिका उपलब्ध होती तदन्तर्गतदीप्ताश्च पदार्थश्च ध्यजादिकाः । एकमेव द्वितीयोपि रूप्यसालोऽयधार्यताम् ।।२।। अन्वयार्थ - तदन्तर्गतदीप्ताः = उस वेदिका के भीतर जाज्वल्यमान, ध्वजादिकाः = ध्वजा आदिक, पदार्थाः = वस्तुयें, च = और. (भवन्ति = होती हैं) (इति एकम् = इस प्रकार एक अर्थात् प्रथम परकोटे का वर्णन हुआ), द्वितीयः = दूसरा परकोट!, रूप्यसाल: = रूप्यसाल . अपि = भी, एकम् एव = एक सा ही, अवधार्यताम् = अवधारित किया जाना अर्थात् समझा जाना चाहिये। श्लोकार्थ - पुष्पवाटिका में उपयुक्त वेदिका पर ध्वजादिक दीप्तियुक्त मङ्गल पदार्थ होते हैं। इस प्रकार यह प्रथम अर्थात् स्वर्णनिर्मित परकोटे का वर्णन हुआ दूसरे परकोटे रूप्यसाल को भी समझना चाहिये।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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