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________________ पञ्चदशः ४३१ तदाज्ञप्तो यक्षपतिः तद्गृहे गगनागतः । यसून्यवर्षदत्युच्चै नाजातीन्यसो मुदा ।।१५।। अन्वयार्थ – तदा = तब, गगनागतः = आकाश से आये, आज्ञप्तः = इन्द्र की आज्ञा को मानने वाले, यक्षपतिः = कुबेर ने, मुदा - हर्ष के साथ, तद्गृहे = उन राजा-रानी के घर में, नानाजातीनि = अनेक प्रकार के, अत्युच्यैः = अति उत्कृष्ट. वसूनि = रत्नों को, अवर्षत् = बरसाया। श्लोकार्थ – तभी आकाश से आये और इन्द्र की आज्ञा को मानने वाले यक्षपति कुबेर ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन राजा-रानी के घर में अनेक प्रकार के अति उत्कृष्ट रत्नों को बरसाया । एकदा भाद्रसप्तम्यां कृष्णायां भूपतिप्रिया । भरण्यामैक्षत प्रातः सा स्वप्नान् षोडशाद्भुताम् ।।१६।। अन्वयार्थ - एकदा = एक दिन, भाद्रसप्तम्यां = भादमास की सप्तमी को. कृष्णायां = कृष्ण पक्ष में, भरण्यां = भरणी नक्षत्र में, सा - उस, भूपतिप्रिया = राजा की रानी ने, षोडश = सोलह, अद्भुतान = आश्चर्यकारी, स्वप्नान् = स्वप्नों को, प्रातः = प्रातः बेला में, ऐक्षत = देखा। श्लोकार्थ – एक दिन भादों वदी सप्तमी को भरणी नक्षत्र में प्रातः बेला में उस रानी ने सोलह अद्भुत स्वप्न देखे। स्वप्नान्त्ये वारणं वक्त्रे प्रविष्टमनुवीक्ष्य सा । कुरुवंशोद्भवं भूपं प्रबुद्धा प्रत्यगात्तथा।।१७।। अन्वयार्थ – तथा = और, स्वप्नान्त्ये :- स्वप्न देखने के अन्त में, वक्त्रे = मुख में, प्रविष्टं = प्रविष्ट होते हुये. वारणं = हाथी को, अनुवीक्ष्य - देखकर, प्रबुद्धा = जागी हुयी, सा = वह रानी, कुरूवंशोद्भवं - कुरुवंश में उत्पन्न, भूपं = राजा की, प्रति = तरफ, अगात् : गयी। श्लोकार्थ – तथा स्वप्न देखने के बाद अपने मुख में प्रविष्ट होते हुये एक हाथी को देखकर जागी हुयी वह रानी कुरुवंशीय राजा की ओर गयी।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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