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________________ ४30 श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य जम्बूद्रीपेऽस्ति 'मरस विषयः पुरुषाङ्गलः । हस्तिनागपुरं तत्र देवेन्द्रपुरोपमम् ।।१२।। अन्वयार्थ - जम्बूद्वीपे = जम्बूद्वीप में, भरते ८. भरत क्षेत्र में, कुरूजाङ्गलः = कुरूजाङ्गल नामक विषयः = देश, अस्ति = है. तत्र = वहाँ, देवेन्द्रपुरोपम = देवेन्द्र के नगर के समान, हस्तिनागपुरं = हस्तिनागपुर, अस्ति = है।। श्लोकार्थ - जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कुरूजाडगल देश है वहॉ देवेन्द्र की अमरावती के समान हस्तिनागपुर नगर है। अपालयद्विश्वसेनः तत्पुरं धर्मकोविदः । ऐराख्या तस्य महिषी रूपशील गुणान्विता 11१३।। अन्वयार्थ -- धर्मकोविदः = धर्म को जानने वाला, विश्वसेनः = राजा विश्वसेन, तत्पुरं - उस हस्तिनागपुर को, अपालयत् = पालता था, तस्य -: उस राजा की, ऐराख्या = ऐरा नामक, रूपशीलगुणान्विता = रूपशील और गुणों से युक्त, महिषी -- रानी, (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ - हस्तिनागपुर का पालन धर्मवेत्ता राजा विश्वसेन करता था उसकी एक ऐरा देवी नामक रूपवती, शीलवती और गुणवती रानी थी। तयोः गृहे भगवतो ज्ञात्याऽवतरणं हरिः । भाव्यथादिशदानन्दात् रत्नवृष्टयै धनेश्वरम् 11१४।। अन्वयार्थ – अथ = इसके पश्चात्. हरिः - इन्द्र ने, तयोः - उन राजा-रानी के, गृहे = घर में, भावि = भविष्य में, भगवतः -- भगवान के, अवतरणं = अवतार जन्म को, ज्ञात्वा -- जानकर, आनन्दात् = आनन्द से, रत्नवृष्ट्यै = रत्नों की दृष्टि करने के लिये, धनेश्वरं = धनपति कुबेर को, आदिशत् = आदेश दिया। श्लोकार्थ – राजा विश्वसेन और रानी ऐरादेवी के घर 'भविष्य में भगवान का जन्म होगा' - ऐसा जानकर अति आनंद से भरकर इन्द्र गे धनपति कुबेर को रत्नवृष्टि करने के लिये आदेश दिया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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