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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य जम्बूद्रीपेऽस्ति 'मरस विषयः पुरुषाङ्गलः ।
हस्तिनागपुरं तत्र देवेन्द्रपुरोपमम् ।।१२।। अन्वयार्थ - जम्बूद्वीपे = जम्बूद्वीप में, भरते ८. भरत क्षेत्र में,
कुरूजाङ्गलः = कुरूजाङ्गल नामक विषयः = देश, अस्ति = है. तत्र = वहाँ, देवेन्द्रपुरोपम = देवेन्द्र के नगर के समान,
हस्तिनागपुरं = हस्तिनागपुर, अस्ति = है।। श्लोकार्थ - जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कुरूजाडगल देश है वहॉ देवेन्द्र
की अमरावती के समान हस्तिनागपुर नगर है। अपालयद्विश्वसेनः तत्पुरं धर्मकोविदः ।
ऐराख्या तस्य महिषी रूपशील गुणान्विता 11१३।। अन्वयार्थ -- धर्मकोविदः = धर्म को जानने वाला, विश्वसेनः = राजा
विश्वसेन, तत्पुरं - उस हस्तिनागपुर को, अपालयत् = पालता था, तस्य -: उस राजा की, ऐराख्या = ऐरा नामक, रूपशीलगुणान्विता = रूपशील और गुणों से युक्त, महिषी
-- रानी, (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ - हस्तिनागपुर का पालन धर्मवेत्ता राजा विश्वसेन करता था
उसकी एक ऐरा देवी नामक रूपवती, शीलवती और गुणवती
रानी थी। तयोः गृहे भगवतो ज्ञात्याऽवतरणं हरिः ।
भाव्यथादिशदानन्दात् रत्नवृष्टयै धनेश्वरम् 11१४।। अन्वयार्थ – अथ = इसके पश्चात्. हरिः - इन्द्र ने, तयोः - उन
राजा-रानी के, गृहे = घर में, भावि = भविष्य में, भगवतः -- भगवान के, अवतरणं = अवतार जन्म को, ज्ञात्वा -- जानकर, आनन्दात् = आनन्द से, रत्नवृष्ट्यै = रत्नों की दृष्टि करने के लिये, धनेश्वरं = धनपति कुबेर को, आदिशत्
= आदेश दिया। श्लोकार्थ – राजा विश्वसेन और रानी ऐरादेवी के घर 'भविष्य में भगवान
का जन्म होगा' - ऐसा जानकर अति आनंद से भरकर इन्द्र गे धनपति कुबेर को रत्नवृष्टि करने के लिये आदेश दिया।