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________________ पञ्चदशः अतीन्द्रियसुखं तत्र यनन्ताख्यं बुभोज सः । तत्वचर्चानिमग्नोऽसौ नित्यं श्रीसिद्धध्यानतः ।।६।। सिद्धार्चायां सदासक्तो नित्यानन्दपरायणः । तत्र षण्मासशिष्टायुः तथा वैराग्यभाजनम् ।।१०।। अन्वयार्थ - तत्र = उस सर्वार्थसिद्धि में, हि = ही, सः = उस अहमिन्द्र ने, अनन्ताख्यं = अनन्त नामक, अतीन्द्रियसुखं = अतीन्द्रिय सुख को, बुभोज :- भोरा, नित्य : हमेशा तन्न निमग्नः - तत्त्वचर्चा में मग्न, श्रीसिद्धध्यानतः = श्री सिद्धभगवन्तों के ध्यान से, सदा = हमेशा, सिद्धार्चायां = सिद्धों की पूजा में, आसक्तः = लगा हुआ, नित्यानन्दपरायणः = हमेशा आनन्द में तल्लीन, असौ = वह अहमिन्द्र देव, तत्र = सर्वार्थसिद्धि में, षण्मासशिष्टायुः = छह माह मात्र अवशिष्ट आयु वाला, तथा = और, वैराग्यभाजनं = वैराग्य का पात्र, अभूत -- हो गया। श्लोकार्थ – उस अहमिन्द्र देव ने सर्वार्थसिद्धि में ही अनन्त नामक अतीन्दिय सुख को भोगा। हमेशा तत्वचर्चा में मग्न, श्रीसिद्ध भगवन्तों के ध्यान से सदैव उनकी पूजा में लगा हुआ और शाश्वत आनंद में तल्लीन वह अहमिन्द्र सर्वार्थसिद्धि नामक विमान में मात्र छह माह की शेष आयु और वैराग्य का पात्र हो गया। अथ तस्यावतारस्य कथां कल्मषनाशिनीम् । श्रोत्राभिरामां शिवदां वक्ष्येऽहं जिनभाषितः ।।११।। अन्वयार्थ – अथ = अब. अहं = मैं, जिनभाषितः = जिनेन्द्र कथित, नाशिनी = पाप को नष्ट करने वाली, शिवदां = मोक्ष को देने वाली, श्रोत्राभिरामा = सुनने में अच्छी लगने वाली. तस्य = उस देव की, अवतारस्य = अवतरण की, कथां = कथा को, वक्ष्ये = कहता हूं। श्लोकार्थ – अब मैं जिनेन्द्र भगवान् द्वारा कही उस देव के अवतरण की, पाप को नष्ट करने वाली. मोक्ष सुख देने वाली और सुनने में मनोरम, कथा को कहता हूं।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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