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________________ ४२८ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ – सः = उन, मुनिसत्तमः = मुनिराज ने, अरण्ये = वन में, एकादश -- ग्यारह, अङ्गानि - अगों को, संसाध्य = साधकर, तत्त्वेन = भाव से, षोडश : सोलह, कारणानि = कारणों को, भावयामास = माया। श्लोड - न मुनिराज मल में ग्यारह अगों को साधकर अर्थात जानकर तत्त्व सहित सोलहकारण भावनाओं का चिन्तवन किया। संन्यासेन तनुं त्यक्त्वा स्वायुषोन्ते तपोनिधिः । सर्वार्थसिद्धौ संलेभे दुर्लभामहमिन्द्रताम् |७|| अन्वयार्थ - तपोनिधिः = तपस्वी मुनिराज ने, स्वायुषः = अपनी आयु के, अन्ते = अन्त में, संन्यासेन - संन्यास मरण से, तनं = शरीर को, त्यक्त्वा = छोड़कर, सर्वार्थसिद्धौ = सर्वार्थसिद्धि में, दुर्लभा = दुर्लभ, अहमिन्द्रतां = अहमिन्द्रता को, संलेभे = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ - तपस्वी मुनिराज ने अपनी आयु के अन्त में संन्यासमरण से शरीर को छोडकर सर्वार्थसिद्धि में दुर्लभ अहमिन्द्रपद को प्राप्त कर लिया। त्रित्रिंशत्सागरायुः स स्वतपोवैभवेन च। तत्रोक्तदेहनिश्यास ऋद्धिविक्रमवानभूत्।।८।। अन्वयार्थ – स्वतपोवैभवेन = अपने तप के वैभव से, सः = वह अहमिन्द्र, त्रित्रिंशत्सागरायुः = तेतीस सागर की आयु वाला, तत्रोक्तदेहनिश्वासः = सर्वार्थसिद्धि में शास्त्रोक्त देह परिमाण व उच्छवास को धारण करने वाला, च == और, ऋद्धिविक्रमवानभूत् = विक्रिया आदि ऋद्धि और पराक्रम वाला हुआ। __ श्लोकार्थ – अपने तपश्चरण रूप वैभव से वह अहमिन्द्र तेतीस सागर की आयु वाला, सर्वार्थसिद्धि के योग्य शास्त्रनिर्दिष्ट देहपरिमाण और श्वासोछवास धारण करने वाला तथा विक्रियादि ऋद्धियों को धारण करने वाला हुआ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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