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________________ पञ्चदश: अन्वयार्थ — श्लोकार्थ श्लोकार्थ जिस कूट से तीर्थकर शान्तिनाथ मोक्ष को गये उस कूट के माहात्म्य को मैं कहता हूं- हे भव्यों में श्रेष्ठ! तुम सब उसे सुनो। जम्बूद्वीपे विदेहेऽथ पुण्डरीकपुरं महत् । श्रीषेणो नृपतिस्तत्र बभूय गुणसागरः ||४|| = = अथ = प्रारंभ सूचक अव्यय इस जम्बूद्वीपे - जम्बूद्वीप में, विदेहे = विदेह क्षेत्र में, महत् बहुत बड़ा पुण्डरीकपुरं = पुण्डरीकपुर नामक नगर ( आसीत् = था ) तत्र = उस नगर में गुरुगुणों के सर अर्थात् अतिशय गुणशाली, श्रीषेणः = श्रीषेण नामक नृपतिः - राजा, बभूव = 277 | श्लोकार्थ – इस जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र में एक विशाल पुण्डरीकपुर नामक नगर था उसमें अतिशय गुणशाली राजा श्रीषेण राज्य करता था। - ४२७ मुक्ति को, गतः नामक, महेश्वरः = तीर्थङ्कर प्रभु मुक्तिं = गये, तस्य = उस कूट के माहात्म्यं = माहात्म्य को, वक्ष्ये : मैं कहता हूं, भव्यसत्तमाः - हे भव्यों में श्रेष्ठ जनो!, श्रृणुध्वं तुम सब सुनो। = 1 — केनापि हेतुना राजा विरक्तः संसृतेः किल । राज्यं त्यक्त्वा स जग्राह दीक्षां जिनमतोचिताम् ।।५।। अन्वयार्थ = = केनापि किसी भी, हेतुना = कारण से, राजा = राजा. संसृतेः = संसार से विरक्तः विरक्त (बभूव हो गया), राज्य - राज्य को, त्यक्त्वा छोड़कर, किल निश्चय ही सः = उसने जिनमतोचितां जिनमत के योग्य दीक्षां मुनिदीक्षा को, जग्राह = ग्रहण कर लिया । - किसी भी कारण से वह राजा संसार से विरक्त हो गया। उसने राज्य को छोडकर निश्चय ही जैनमत के सिद्धान्तों के अनुरूप मुनि दीक्षा को अङ्गीकार कर लिया। अङ्गान्येकादशारण्ये संसाध्य मुनिसत्तमः । भावयामास तत्त्वेन कारणानि सः षोडश ॥ ६ ।। = = = =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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