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अथ पञ्चदशमोऽध्याय सिद्धास्पदकृत्तावासं परमानन्दविग्रहम् ।
महाशान्तिप्रदातारं शान्तिनाथं स्मराम्यहम् ।।१।। अन्वयार्थ – अहं = मैं. परमानन्दविग्रह = परम आनंद ही जिनका शरीर
है ऐसे, महाशान्तिप्रदातारं = परम शान्ति को देने वाले. सिद्धास्पदकृतावासं = सिद्ध स्थान अर्थात् निर्वाण पद में जो प्रतिष्ठित हैं उन, शान्तिनाथं = शान्तिनाथ को, स्मरामि =
प्रसन्नता पूर्वक याद करता हूं। श्लोकार्थ – मैं परम आनंद ही है शरीर जिनका ऐसे आनन्द शरीर वाले,
महा शान्ति के देने वाले और सिद्धालय में रहने वाले
शान्तिनाथ भगवान् को प्रसन्नता सहित याद करता हूं। शान्तिनाथप्रसादाय पञ्चकल्याणदायकम् ।
वक्ष्येऽहं चरितं तस्य श्रवणात् सर्वसिद्धिदम् ।।२।। अन्वयार्थ .. अहं = मैं, शान्तिनाथप्रसादाय = शान्तिनाथ जैसी प्रसन्नता
पाने के लिये, तस्य = उन शान्तिनाथ का, पञ्चकल्याणदायक = पाँच कल्याणकों के देने वाले, श्रवणात् = सुनने से, सर्वसिद्धिदं = सारी सिद्धियों को देने वाले, चरितं - चरित
को, वक्ष्ये = कहता हूं। श्लोकार्थ – शान्तिनाथ भगवान् जैसी प्रसन्नता पाने के लिये पाँच
कल्याणक स्वरूप पुण्य को देने वाले और सुनने से सभी सिद्धियों के देने वाले उन शांतिनाथ भगवान के चरित को
कहता हूं। यस्मात्कूटाद् गलो मुक्तिं शान्तिनाथो महेश्वरः ।
वक्ष्ये तस्यापि माहात्म्यं शृणुध्वं भव्यसत्तमाः ।।३।। अन्वयार्थ – यस्मात् = जिस, कूटात् = कूट से, शान्तिनाथः = शांतिनाथ