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________________ चतुर्दशः ४२३ = उस 'भैरी की, महिमा = प्रसिद्धि-ख्याति या प्रभाव, न्यूनतां = न्यूनता को. गतः = प्राप्त हो गया, च = और, पूर्ववत् = पूर्व के समान, एव = ही, तद्यात्रा = उसके शब्द सुनने हेतु की गयी यात्रा. रोगहर्तुं = रोग दूर करने के लिये, न = नहीं, प्राभवत् = समर्थ हुई श्लोकार्थ- रोग न मिटने के कारण हर दिन उस भेरी की महिमा कम होती चली गयी और पहिले के समान अब उसके शब्द सुनकर रोग मिटाने के लिये लोगों की यात्रा रोग मिटाने में समर्थ नहीं हुई। तवृत्तान्तः श्रुतो राज्ञा तदा दुःखमयाप सः । मनस्यचिन्तयत् कस्माद्धेतोः सा मोद्यतां गता ||६१। 'अन्वयार्थ- राज्ञा = राजा द्वारा, तद्वृतान्तः = भेरी का वह समाचार, श्रुतः = सुना गया, तदा = तब, सः = वह राजा, दुःखं = दुख को, अवाप = प्राप्त हुआ, (च = और), (सः = उसने), मनसि = मन में, अचिन्तयत् = सोचा, कस्मात् = किस, हेतोः = हेतु से, सा = वह भेरी, मोद्यता = निरर्थकता या प्रभावहीनता को, गता = प्राप्त हो गयी। श्लोकार्थ- जब राजा द्वारा भेरी का वह समाचार सुना गया तो वह दुःख से भर गया उसने सोचा किस कारण से वह भेरी बेकार हो गयी। ध्यायतो भूपतेस्तस्य देवः प्रत्यक्षतां गतः । कथितः सर्ववृत्तान्तः तेन राज्ञा श्रुतोऽखिलः ।।१२।। भावदत्तस्तदा भूपो हर्षितो देवसङ्गमात् । संसाराद् विरक्तोऽभूत् मुमुक्षुः मोक्षसिद्धये ।।१३।। अन्वयार्थ- तदा = तभी, ध्यायतः = ध्यान करते हुये, तस्य = उस. भूपतेः = राजा के लिये, देवः = वह देव, प्रत्यक्षता = प्रत्यक्षता को, गतः = प्राप्त हो गया, तेन - उस देव द्वारा, सर्ववृतान्तः = सारी बात, कथितः = कह दी गयी, राज्ञा = राजा के द्वारा, अखिलः = सारा, (वृतान्तः = समाचार), श्रुतः = सुना गया,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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