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________________ ४२४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य देवसङ्गमात् = देव का संग मिलने से, हर्षितः = प्रसन्न हुआ, (सः = वह), मुमुक्षुः = मोक्षेच्छु, भावदत्तः = भावदत्त नामक, भूपः = राजा, मोक्षसिद्धये = मोक्ष पाने के लिये. संसारात् = संसार से, दिर... विरमस, अनल = हो म । श्लोकार्थ- तभी ध्यान करते उस राजा के लिये वह देव प्रत्यक्ष अर्थात् सामने उपस्थित हो गया और उसने सारा वृतान्त राजा को कह दिया राजा ने सब कुछ सुना तथा देव के संग से प्रसन्न हो गया अतः मोक्षाभिलाषी वह मोक्ष पाने के लिये संसार से विरक्त हो गया। त्रित्रिंशत्कोटिभव्यैः स साधु सङ्घसमर्चकः । यात्रां सम्मेदशैलस्य श्रेष्ठां चक्रे महामतिः ।।६४|| अन्ययार्थ- सः = उस, सङ्घसमर्चकाः = चतुर्विध संघ की यथायोग्य अर्चना करने वाले, महामतिः = महान् ज्ञानी राजा ने, त्रित्रिंशत्कोटिमव्यैः सार्ध = तेतीस करोड भव्य जीवों के साथ, सम्मेदशैलस्य - सम्मेदाचल पर्वत की, श्रेष्ठां = श्रेयस्कर, यात्रां = यात्रा को. चक्रे = किया। श्लोकार्थ- संघ के समर्थक व प्रपूजक उस बुद्धिमान् राजा ने तेतीस करोड भव्य जीवों के साथ सम्मेदशिखर की श्रेयस्कर यात्रा को किया। तत्र गत्या महीपालः नाम्ना दत्तवरं गिरेः । कूट भायेन यवन्दे मुक्तः संसारबन्धनात् ।।५।। अन्वयार्थ- महीपालः = राजा ने, तत्र = वहाँ, गत्वा = जाकर, गिरेः = पर्वत की. नाम्ना = नाम से, दतवरं = दत्तवर नामक. फूट = कूट को, भावेन = भावसहित, ववन्दे = प्रणाम किया, येन = जिससे, संसारबन्धनात् = संसार के बन्धन से, (सः = वह). मुक्तः = मुक्त, (स्यात् = हो)। श्लोकार्थ- महीपाल ने पर्वत पर जाकर पर्वत की दत्तवर नामक कूट को भाव सहित प्रणाम किया जिससे वह संसार के बन्धन से मुक्त हो जावे।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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