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________________ ४२२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य क्षितिनायकः = राजा ने, व्यथां = व्याधि को, संहृत्य = दूर कर. तत्क्षणात् = उस क्षण से. सर्वाङगो = सर्व शरीरी. निय॑थुः = व्यथा रहित, अभूत् = हो गया। श्लोकार्थ- भेरी के टुकड़े को घिसकर और अपने शरीर पर लगाकर उस राजा ने व्याधि को दूर कर उसी क्षण सारे शरीर में व्याधिरहित हो गया। रीत्यानयैय सा भेरी द्रव्यलोभान्वितैनरैः । छित्त्वा दत्त्वा च तस्मान्न दोषाय यथा भवेत् 11५८।। तथा भेरी नवीनैका स्थापिता राजमन्दिरे।। तन्नादश्रवणाद्रोगी रोगशान्तिं नान्यभवत् ।।८।। अन्यार्थ. अनया = इसी, रीत्या = रीति से, एव = ही, सा = वह, भेरी, दत्यलोभान्वितैः = द्रव्य के लोभ से प्रेरित, नरैः = मनुष्यों के द्वारा, छित्त्वा = तोड़-तोड़कर, दत्ता = दे दी गई, च = और, यथा :- गो, मेरीनाशः -- ?री का नष्ट हो जाना) दोषाय = दोष के लिये, न = नहीं, भवेत् = हो, तस्मात् = इसलिये, तथा = वैसी ही, एका = एक, नवीना = नई, भेरी -- भेरी, राजमन्दिरे = राज मन्दिर में, स्थापिता = स्थापित कर दी गयी, (किन्तु =: किन्तु), तन्नादश्रवणात् = उस भेरी के नाद को सुनने से, रोगी = रोगी ने. रोगशान्तिं = रोगशान्ति को, नान्वभवत् = अनुभव नहीं किया। श्लोकार्थ- इसी रीति से ही वह भेरी द्रव्य के लोभ से प्रेरित होकर मनुष्यों के द्वारा तोड़-तोड़कर नष्ट कर दे दी गयी और जिस प्रकार भेरी का नष्ट होना दोष के लिये न हो इसलिये वैसी ही एक नई भेरी राजमन्दिर में स्थापित कर दी गयी किन्तु उसके नाद को सुनने से रोगियों को रोगशान्ति का अनुभव नहीं किया। ततः प्रतिदिनं तरयाः महिमा न्यूनतां गतः । पूर्ववच्चैव तधात्रा रोगहर्तुं न प्राभवत् ।।१०।। अन्ययार्थ- ततः = उस कारण से, प्रतिदिनं = एक-एक दिन, तस्याः
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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