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चतुर्दश:
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श्लोकार्थं . उसके बाद मेरी के प्रभाव को नह राजा श्रीपुर नगर
में आया वहाँ उसने समाचार प्राप्त किया कि भेरी माह में एक दिन ही बजायी जाती है तो वह बहुत भारी चिन्ता में पड़ गया ।
तदा
पुरूषसेनाख्यं पप्रच्छ सचिवं नृपः ।
को वा यत्नो मया कार्य इदानीं मंत्रिसत्तम । ७६ ।। मासे गले ध्वनिश्चास्याः भविष्यति नृपालये ।
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समेति दुर्लभः कष्टान् त्वयाऽप्यत्र विचार्यताम् ||८०|| अन्वयार्थ - तदा = तब नृपः = राजा ने पुरूषसेनाख्यं पुरूषसेन नामक सचिवं = सचिव को, पप्रच्छ = पूछा, मंत्रिसत्तम = हे मंत्रिश्रेष्ठ!, इदानीं अब, मया मेरे द्वारा, को वा कौन सा, यत्नः = यत्न. कार्य: = करना चाहिये, नृपालये = राजा के भवन में अस्याः - इस भेरी की, ध्वनिः ध्वनि, मासे = एक माह, गते = बीतने पर भविष्यति = होगी, दुर्लभः यह दुर्लभ ध्वनि, कष्टान् = कष्टों को समेति : शमन करती हैं, अत्र = यहाँ त्वयापि = तुम्हारे द्वारा भी विचार्यताम् विचार किया जाये।
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श्लोकार्थ तब राजा ने पुरूषसेन नामक सचिव से पूछा हे मंत्रिश्रेष्ठ! अब मेरे द्वारा ऐसा कौन सा प्रयत्न करना चाहिये राजा के महल में तो इस भेरी की ध्वनि तो अब एक माह बीत जाने पर ही होगी जैसे यह दुर्लभ ध्वनि कष्टों को शमन करती है वैसा करने हेतु आप यहाँ विचार करें ।
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मन्त्रिणोक्तं महीपाल । बहुद्रव्यव्ययाद् ध्रुवम् । अकालेऽपि ध्वनिं श्रोतुं शक्यः स्यादन्यथा नहि । । ६१ ।। अन्वयार्थ मन्त्रिणा मंत्री द्वारा कहा गया, महीपाल हे महीपाल !. ध्रुवं निश्चित ही बहुद्रव्यव्ययात् = अत्यधिक द्रव्य खर्च करने से, अकालेऽपि = अकाल में भी, ध्वनिं = ध्वनि को. श्रोतुं = सुनना, शक्यः = संभव, स्यात् = होवे, अन्यथा = अन्य प्रकार से, न हि = नहीं ।
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