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श्लोकार्थ - एक वात रोग से पीडितान पति
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य वे उस भेरी की समीपता पाने के लिये वहाँ आ जाते थे। जो भी वहाँ आया और जिसने उस भेरी से निकले उत्तम घोष को सुना वह उसी समय उत्कृष्ट पुण्यों से चिरअभिलाषित निरोगता को प्राप्त हुआ। एकदा भूपति: राजगृहग्रामेश्वरो महान्।
महेन्द्रनामतो वासपीड़िताङ्गो बभूव सः ।।७६।। अन्वयार्थ - एकदा - एक बार, राजगृहग्रामेश्वरः = राजगृह ग्राम के
स्वामी, महेन्द्रनामतः = महेन्द्र नाम से. (ख्यातः = प्रसिद्ध), स:- वह महान - महान, भूपतिः -- राजा, वातपीडिताङगः
:: वात रोग से पीडित शरीर वाला, बभूव = हो गया। श्लोकार्थ . एक बार राजगह गामा स्वामी तथा महेन्द्र नाम से जाना
जाने वाला वह महान राजा वातरोग से पीड़ित हो गया। उपाया बयस्तेन, कृताः यातोपशान्तये ।
शान्तो नैवा भवद्वायुर्देहपीड़ाकरो धुवम् । ७७ ।। अन्वयार्थ · तेन = उस राजा द्वारा, बहवः = बहुत, उपायाः = उपाय,
वातोपशान्तये -- वायु का शमन करने के लिये, कृताः = किये गये, (तथापि = फिर भी), वायुः = वायु, शान्तः -- शान्त, नैव = नहीं ही, अभवत् - हुआ, ध्रुवं = निश्चित ही, देहपीडाकर:
= देह पीड़ित करने वाला हुआ। श्लोकार्थ - उस राजा द्वारा वायु का उपशमन करने के लिये बहुत सारे
उपाय किये गये तथापि उसका वह वायु रोग शान्त नहीं हुआ
अपितु निश्चित ही देह को कष्टकर हुआ | भेरीप्रभावमाकर्ण्य ततो सौऽतत्र चाप्तवान् ।
एकघनान्तरे मासात् चिन्तामाप गरीयसीम् ।।७८|| अन्वयार्थ - ततः - उसके बाद, भेरीप्रभावं = भेरी के प्रभाव को, आकर्ण्य
= सुनकर, असौ = वह राजा, तत्र = वहाँ श्रीपुर नगर में, मासात् = एक मास से, एकघम्रान्तरे = एक दिन के भीतर प्रति प्रहर एक बार, (भेरी = भेरी), (ताह्यते = बजायी जाती है), (इति = इस), (वृतान्तं = समाधार को), आप्तवान् = प्राप्त किया, तत: - उससे. गरीयसी = बहुत बड़ी भारी, चिन्तां = चिन्ता को, आग - प्राप्त हो गया।