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________________ प्रथमा प्रचुरतां = स्फटिक नामक दैदीप्यमान मणियों की। प्रचुरता को, . गतः = प्राप्त. ज्ञेयः = जानना चाहिये, तत्र - उनमें, धूलिसालान्तरे = धूलिसाल नामक परकोटे के भीतर, चतुर्दिक्षु = चारों दिशाओं में, हिरण्यमयाः = स्वर्ण रचित, चत्वारः = चार, मानस्तम्भाः = मान स्तंभ, (भवन्ति = होते हैं), तेषां = उन स्तंभों के, पार्वे = पास में, चतुर्दिक्षु = चारों दिशाओं में, चतुश्चतुःसरोवर्यां - चार-चार सरोवर, वै = सचमुच, शुभोदकाः = अच्छे, मीठे जल वाले, प्रभान्ति = सुशोभित होते रहते हैं। श्लोकार्थ - उस धूलिसाल नामक परकोटे से, जो तीन परकोटे हैं उनमें पहिला परकोटा स्वर्णनिर्मित, दूसरा परकोटा चाँदी से बना हुआ और, तीसरा परकोटा चमकती- प्रकाशित होतीं स्फटिक मणियों से बना हुआ जानना चाहिये। धूलिसाल परकोटे के भीतर चारों दिशाओं में चार स्वर्णमयी मानस्तंभ होते हैं तथा प्रत्येक मानस्तंभ के पास में चारों दिशाओं में चार मीठे और स्वच्छ जल से भरे सरोवर होते हैं। इस प्रकार चारों मान् स्तंभों के पास कुल सोलह सरोवर जानना चाहिये। त्रिमेखलासनस्थास्ते त्रित्रिसालयुताः शुभाः । मानस्तम्भाश्चतुर्दिक्षु तेषु तत्फलदायकाः ।।७७।। चतुश्चतुः सिद्धबिम्बाः प्रतिस्तम्भं समीक्षिताः। प्रथमं हेमसालो यस्तयहिः खातिका स्मृता |७८ ।। अन्ययार्थ · ते = वे. मानस्तम्भाः = मानस्तम्भ, शुभाः = शुभलक्षणों से युक्त, त्रित्रिसालयुताः = तीन-तीन भित्ति दीवारों अर्थात् तीन-तीन कटान २..हेत, (भवन्ति = होते हैं), तेषु = उन मानस्तंभो में, सत्फलदायकाः = सम्यक उत्तम फलों को देने वाली, निमेखलासनस्था: = तीन मेखालाओं के आसन पर स्थित, चतुश्चतुः = चार-चार, सिद्धबिम्बाः = स्वत सिद्ध
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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