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चतुर्दशः
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राजा, सम्मेदभूभृतः = सम्मेदशिखर पर्वत की, यात्रा = यात्रा को, कृत्वा = करके. मुक्तिं = मोक्ष को, गतः = चला गया. अहं = मैं, शुमां = शुभ, तत्कथां = उसकी कथा को, वक्ष्ये
= कहता हूँ। श्लोकार्थ - अब सीमावयत्त नामक राजा शिखर गर्दन की यात्रा
करके मुक्ति प्राप्त की इसकी शुभ कथा को मैं कहता हूं। द्वीपे जम्बूमतिख्याते भरतक्षेत्र उत्तमे ।
पाञ्चालविषयो भाति श्रीपुरं श्रीनिकेतनम् ।।५६ ।। अन्वयार्थ - ख्याते - सुप्रसिद्ध, जम्यूमति = जंबूवृक्ष से युक्त, द्वीपे =
द्वीप में. उत्तमे = श्रेष्ठ, भरतक्षेत्रे = भरतक्षेत्र में पाञ्चालविषयः = पाञ्चाल देश, भाति = सुशोभित होता है, (तत्र = वहाँ), श्रीनिकेतनम् = लक्ष्मी के निवास स्वरूप, श्रीपुर
= श्रीपुर नामक नगर, (आसीत् = था)। श्लोकार्थ - सुप्रसिद्ध जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के उत्तम पाञ्चाल देश में लक्ष्मी
का निवास स्वरूप श्रीपुर नामक नगर था। भावदत्तो नृपस्तत्र सम्यक्त्वादिगुणान्वितः ।
महेन्द्रदत्तया देव्या रराजेव हरिश्रिया ।।७।। अन्वयार्थ - तत्र = उस श्रीपुर नगर में, सम्यक्त्वादिगुणान्वितः = सम्यक्त्व
आदि गुणों से विभूषित, भावदत्तः = भावदत्त नामक, नृपः = राजा. हरिश्रिया इव = इन्द्र की लक्ष्मी के समान, महेन्द्रतया - = महेन्द्रदत्तया नामक, देव्या = सनी के साथ, रराज =
सुशोभित हुआ। श्लोकार्थ - श्रीपुर नगर में सम्यक्त्वादि गुणों से विभूषित भावदत्त नामक
राजा इन्द्र की लक्ष्मी के समान महेन्द्रदत्ता रानी के साथ
सुशोभित हो रहा था। चिरम्युभोज राज्यं स सर्वसौख्यरसान्वितम् ।
धर्मविन्नीतिविद्वन्धः शास्त्रविद्धर्मकार्मुकः ।।५८ ।। अन्वयार्थ - सः = उस, धर्मविद् = धर्म के जानकार, नीतिविद = नीति
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का का।