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________________ ४१० श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ - सारे कर्मों के बन्धन से मुक्त हुये उन मगवान् धर्मनाथ ने एक हजार मुनियों के साथ कठिनता से प्राप्त और मुनियों के लिये इष्ट मोक्ष को प्राप्त कर लिया | एकोनविंशनिकोटीन. कोट्य स्तरमा गोर। एकोनविंशतिकोट्यस्तु नवलक्षास्तथेरिताः ||५२।। नवैव च सहस्राणि तथा सप्तशतानि च । पञ्चोत्तर नवत्या संयुता नित्येव सङ्ख्याया ||५३।। गणिता दत्तधवलात् भच्याः मुक्तिपदं गताः । ईदृशो दत्तधवलः कूट: साम्मेदिकः स्मृतः ।।५४।। अन्वयार्थ - तस्मात् = उस, दत्तधवलात् = दत्तधवल नामक कूट से, प्रभोः = धर्मनाथ भगवान् के, अनु = पश्चात्, एकोन विंशतिकोटीनां कोट्यः = उन्नीस कोड़ा कोड़ी, एकोनविंशतिकोट्यः = उन्नीस करोड, नवलक्षाः = नौ लाख, तथेरिताः = वैसे ही कहे गये, तथा च = और, नव सहस्राणि = नौ हजार, सप्तशतानि = सात सौ, च = और, पंचोत्तरनवत्या = नब्बे से पांच ऊपर अर्थात् पंचानवे, संख्यया = संख्या से. एव = ही, संयुताः = युक्त, नित्या इव = हमेशा की तरह. गणिताः = गिने गये या परिगणित, भव्याः = भव्य जीव, मुक्तिपदं = मोक्षपद को, गताः = प्राप्त हये, ईदृशः = ऐसा, दतधवल: = दत्तधवल नामक, साम्मेदिकः = सम्मेदपर्वत का अपनी. कूट: = कूट, स्मृतः = याद की जाती है। श्लोकार्थ - उस दत्तधवल नामक कूट से भगवान् धर्मनाथ के बाद उन्नीस कोड़ा-कोड़ी, उन्नीस करोड़, नौ लाख, नौ हजार सात सौ पञ्चानवे भव्य मुनिराज मोक्ष को गये। इस प्रकार यह सम्मेदशिखर की दत्तधवलकूट है, जिसे विद्वज्जनों ने याद रखा है। अथ श्री भावदत्ताख्यों नृपः सम्मेदभूभृतः । यात्रां कृत्या गतो मुक्तिं वक्ष्ये ह तत्कथां शुभाम् ।।५५ ।। __ अन्वयार्थ - अथ = अब, श्रीभावदत्ताख्यः = श्रीभावदत्त नामक. नृपः =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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