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________________ ४०८ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य भय्याश्वारिष्टसेनाधाः गणेन्द्राश्च तदादिकाः । सर्वे द्वादशकोष्ठेषु यथोक्तास्तस्थुरूत्तमाः ।।४६।। अन्वयार्थ - (तस्य = उस समवसरण के), द्वादश कोष्टेषु = बारह कोठों में, यथोक्ताः = जैसे शास्त्र में कहे गये है तदनुसार, अरिष्टसेनाद्याः = अरिष्टसेन आदि, गणेन्द्राः - गणधर. च - और, तदादिकाः = उनको प्रमुख या आदि मानकर जो, उत्तमाः = उत्तम, भव्याः = भव्यजीव, (ते = वे), सर्वे = सभी, तस्थुः - स्थित थे। श्लोकार्थ - जैसे शास्त्रों में कहा गया है तदनुसार ही समवसरण के बारहीं कोठों में अरिष्टसेन आदि गणधर और उनको आदि करके अन्य सभी उतम भव्य जीव स्थित थे। स्वाभिर्विभूतिभिर्दीप्तः प्रभुः पृष्टो मुनीश्वरैः । दिव्यनादेन सर्वेभ्यः चक्रे धर्मोपदेशनम् ।।४७।। अन्वयार्थ - मुनीश्वरैः - गणधरादि मुनिप्रमुखों द्वारा, पृष्टः = पूछे गये, स्वाभिः = अपनी, विभूतिभिः = अन्तरम-बहिरङ्ग विभूतियों से. दीप्तः = कान्तिमान प्रभुः = भगवान् ने, दिव्यनादेन = दिव्य ध्वनि से, सर्वेभ्यः = सभी के लिये. धर्मोपदेशनम् = धर्म के उपदेश को, चक्रे = किया। श्लोकार्थ - गणधर आदि मुनिराजों द्वारा जब भगवान्।यूछे गये तो अपनी स्वयं की विगूतियों दीप्त अर्थात् तेजोमय भगवान् ने दिव्यध्वनि से सभी के लिये धर्म का उपदेश दिया। उच्चरन् दिव्यनिर्घोषं सर्वेषां संशयान दहन् । पुण्यक्षेत्रेषु देशेषु विजहार जगत्पतिः ।।४८|| अन्वयार्थ - जगत्पतिः = जगत् के स्वामी भगवान ने, दिव्यनिर्घोषं = दिव्यध्वनि के घोष को, उच्चरन् = उच्चरित करते हुये, (च = और), सर्वेषां = सभी लोगों के, संशयान् = संशयों को, दहन = जलाते नष्ट करते हुये, पुण्यक्षेत्रेषु = पुण्यक्षेत्र स्वरूप, देशेषु = देशों में, विजहार = विहार किया। श्लोकार्थ - जगत्पति भगवान् ने दिव्यदेशना करते हुये तथा सभी लोगों
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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