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________________ Yote चतुर्दशः अथ = फिर, प्रभुः = मुनिराज ने, पौष्ये = पौष माह में. सत्पूर्णिमादिने = शुभ पूर्णिमा के दिन, घातीनि = घातिया कर्मों को, भरमीकृत्य = भस्म करके, तूलीवृक्षतले - शहतूत के पेड़ के नीचे, केवलं = केवल, ज्ञानं = ज्ञान को, प्राप्तवान् = प्राप्त कर लिया। योगार्थ - अल्पज्ञ अपरायो एल वाई परिमित काल में अनेक देशों में गये हुये उन मुनिराज ने, शीत, हवा और गर्मी को सहन करते हुये अत्यधिक घोर तपश्चरण किया। फिर उन मुनिराज ने पौष्य शुक्ला पूर्णिमा के शुभ दिन घातिया कर्मों का नाश करके तूल अर्थात् शहतूत वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। यथादर्श मुखाम्भोजं प्राप्त सम्यक् प्रदर्श्यते । लोकालोकद्वयं तद्वत् वीक्ष्यते तत्र केवले ।।४४।। अन्वयार्थ - यथा = जिस प्रकार, आदर्श = दर्पण, प्राप्ते = प्राप्त होने पर, मुखाम्भोजं = मुख रूप कमल, सम्यक् = सही, प्रदर्श्यते = देखा जाता है, तद्वत् = वैसे ही. तत्र = उस, केवले = केवलज्ञान में, लोकालोकद्वयं = लोक और अलोक दोनों. वीक्ष्यते = देखे जाते हैं। श्लोकार्थ . जिस प्रकार दर्पण के मिल जाने पर मुखकमल सही देख लिया जाता है वैसे ही उस केवलज्ञान के हो जाने पर लोकालोक दोनों ही देख लिये जाते हैं। तदा समवसारं ते समरचयज्जगदीश्वरम् । तत्रस्थं पूजयामासुः देयाश्चेन्द्रपुरोगमा: ।।४५।। अन्वयार्थ - तदा = तभी अर्थात् प्रभु को केवलज्ञान हो जाने पर. ते = उन, इन्द्रपुरोगमाः - इन्द्र की प्रधानता वाले. देवाः = देवों ने, समवसारं = समवसरण को, अरचयत् = रच दिया, च - और, तत्रस्थं = उस समवसरण में स्थित, जगदीश्वरं = जगत् के स्वामी भगवान् को, पूजयामासुः = पूजा की। श्लोकार्थ - प्रभु को केवलज्ञान हो जाने पर इन्द्र की प्रमुखता में उन देवताओं ने समवसरण की रचना की तथा उसमें विराजमान जगत् के भगवान की पूजा की।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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