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________________ ४०० पत्युस्समीपं गत्वाथ तन्मुखास्वप्नसत्फलम् । श्रुत्वाऽनन्दमवाप्योच्चैः गर्भवत्यभवत्सली ।।२१।। = • अन्ययार्थ - अथ = इसके बाद, पत्युः = पति के समीपं पास में, गत्वा = जाकर, तन्मुखात् ! = पति के मुख से स्वप्नसत्फलं = स्वप्न के शुभ फल को श्रुत्वा = आनन्दं = आनन्द को, अवाप्य सली = पतिव्रता रानी, गर्भवती अभवत् = हुई। सुनकर, उच्चैः - उत्कृष्ट, प्राप्त करके, (सा = वह), गर्भधारण करने वाली. - - श्री सम्मेदशिखर माहात्स्य = श्लोकार्थ स्वप्न देखने के बाद पति के पास जाकर, उनके मुख से स्वप्नों के शुभ फल को सुनकर और उत्कृष्ट आनंद प्राप्त करके वह पतिव्रता रानी गर्भवती हुयी। - 1 अन्वयार्थ माघे माघ, मासि माह में. = माह में शुक्लायां = शुक्ल पक्ष में, त्रयोदश्यां = तेरस के दिन शुभे= शुभ, पुष्यमे = पुष्य नक्षत्र में, सा उस रानी ने सर्वदेवगणेश्वरं सभी देवता गणों के स्वामी, अद्भुतं = विलक्षण आश्चर्योत्पादक, पुत्रं = पुत्र असूत = उत्पन्न किया । को माघे मासि त्रयोदश्यां शुक्लायां पुष्यभे शुभे । असूत साऽद्भुतं पुत्रं सर्वदेवगणेश्वरम् ।।२२।। = श्लोकार्थ - माघ मास की शुक्ला त्रयोदशी के दिन शुभकारी पुष्य नक्षत्र में सभी देवताओं के ईश्वर स्वरूप अद्भुत अर्थात् विलक्षण पुत्र को जन्म दिया। इन्द्रादिदेवास्तज्ज्ञात्या जयशब्दपुरस्सराः । तदैयागत्य तत्रैव समादायाद्भुतं शिशुम् ।।२३ । । सुमेरूपर्वतं गत्वा चक्रुस्तत्रोत्सवं पृथुम् । अभिषिच्य प्रभुं शक्रः क्षीरवारिधिवारिभिः ।। २४ ।। तदन्ते प्रभुमाभूष्य दिव्यभूषणमालया । पुनः रत्नपुरं प्राप्य तत्राप्युत्सवमाकरोत् ।।२५।। अन्वयार्थ - तज्ज्ञात्वा = प्रभु के जन्म को जानकर, तदैव उस ही समय,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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