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अन्वयार्थ
श्लोकार्थ
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अन्वयार्थ
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
तस्य = उस राजा की, सुव्रता = सुव्रता नाम की, सती = सतीत्व धर्म का पालन करने वाली शीलवती, धर्मपरायणा धर्मशीला, त्रिजगत्सुन्दरी तीनों जगत् में सर्वाधिक सुन्दरता को धारण करने वाली, मौलिरत्नम् ( इव) = मुकुट में जडित रत्न के समान, स्त्रीरत्नसंज्ञिता = स्त्रीरत्न संज्ञा से विभूषित, महिषी रानी, (आसीत् = थी ) ।
उस राजा की सुव्रता नाम की शीलवती धर्मनिष्ठा सम्पन्न धर्मक्रियाओं को करने वाली तीन लोक में सर्वाधिक सौन्दर्य को धारणा तथा निरत्न के समान स्त्रीरत्न की संज्ञा से विभूषित एक रानी थी।
तया सह स धर्मात्मा शास्त्रविन्नीतिवित्तथा । धर्म्यान्भोगान् यथाकालं बुभुजे वासवोपमः ||१६||
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अन्वयार्थ तथा उस रानी के सह = साथ, धर्मात्मा = धर्मानुरागी या धर्म मार्ग पर चलने वाले शास्त्रवित् = शास्त्र के ज्ञाता, तथा = और नीतिवित् नीतियों के ज्ञाता, सः = उस, वासवोपमः इन्द्र के समान राजा ने यथाकालं उचितकाल में, धर्म्यान धर्म की मर्यादा के योग्य, भोगान् = भोगों को, बुभुजे = भोगा ।
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देवावतारं तद्गेहे
जगत्यवनमुत्तमम् ।
ज्ञात्वा शक्राज्ञया चक्रे रत्नवृष्टिं धनाधिपः ।। १७ ।।
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जगति = जगत् में, उत्तमं उत्तम, अवनं पालनहार स्वरूप, देवावतारं = प्रभु के जन्म को ज्ञात्वा = ज्ञानकर, धनाधिपः कुबेर ने. इन्द्राज्ञया = इन्द्र की आज्ञा से, तद्गेहे = उस राजा के घर में, रत्नवृष्टि - रत्नों की वर्षा, चक्रे = की। श्लोकार्थ - जगत् में उत्तम पालनहार प्रभु का जन्म जानकर इन्द्र की आज्ञा से उस राजा के घर में कुबेर ने रत्नों की वर्षा की। षण्मासावध्यहोरात्रमेकरूपां किलाद्भुताम् ।
रत्नवृष्टिं समीक्ष्यैनां भावि भर्द जगुर्बुधाः || १८ ||
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