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________________ ३९७ चतुर्दशः = मैं कहता हूं, अमलाः = हे निर्मल मन थाले लोगों, श्रृणुत = तुम सब सुनो। श्लोकार्थ - सर्वार्थसिद्धि में परम आनंद को भोगने वाला. छह माह शेष आयु वाला, सिद्ध भगवन्तों के ध्यान में अत्यंत चतुर और अनासक्त चित्तवाला वह देव सर्वार्थसिद्धि से च्युत होकर जिस देश में, जिस राजा के शुभ घर में जगत्स्वामी बनकर अवतीर्ण हुआ मैं उस अवतरण कथा को कहता हूं/हे निर्मलचित्त वालों तुम सब उसे सुनो। जम्बूमति महापुण्ये द्वीपे क्षेत्रो च भारते। कौशलारचे शुभे देश भाति रापुरं महत् ।।१३।। अन्वयार्थ - जम्बूमति = जम्बू वृक्ष वाले, द्वीपे = द्वीप में, महापुण्ये = महापुण्यशाली. भारते = भारत, क्षेत्रो = क्षेत्र में, कौशलाख्ये = कौशल नामक, शुभे = शुभ, देशे = देश में, महत् = बड़ा. रत्नपुर = रत्नपुर नामक नगर, भाति = सुशोभित होता था। श्लोकार्थ - जम्बूलीप के महापुण्यशाली भरतक्षेत्र में कौशल नामक एक सुन्दरं देश था जिसमें रत्नपुर नामक एक बड़ा नगर सुशोभित होता था। इक्ष्वाकुवंशे सद्गोत्रो काश्यपे भानुभूपतिः । अभवत्तत्पुरत्राता चाद्भुतोयं निधिर्महान् ||१४|| अन्वयार्थ - तत्पुरत्राता = उस रत्नपुर नगर का पालनहार रक्षक, भानुभूपतिः - भानु राजा, इक्ष्वाकुवंशे = इक्ष्वाकुवंश में, काश्यपे = काश्यप नामक, सद्गोत्रे = शुभ गोत्र में, अभवत् = हुआ था, अयं = यह राजा, अदभुत = आश्चर्यकारी, निधिः = पुण्यनिधि, च = और, महान् - महान्, (अभवत् = था)। श्लोकार्थ - उस रत्नपुर नगर के रक्षक या पालन कर्ता राजा भानु इक्ष्वाकुवंश के काश्यप नामक शुभ गोत्र में हुये थे यह महान् राजा अद्भुत पुण्य की निधि अर्थात् अत्यधिक पुण्यशाली था। सुव्रता तस्य महिषी सती धर्मपरायणा | त्रिजगत्सुन्दरी मौलिरत्नं स्त्रीरत्नसंज्ञिता।।१५।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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