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________________ ३८० वातसेनाभिधस्तस्य शुभसेना सुधार्मिणी । तनयोऽभूदभाग्यवान् ||६२ || तयोस्समुद्रदत्ताख्यः M = जम्बू नामक, महति महान्, द्वीपे द्वीप में, भरतक्षेत्र के बीच रम्या = रमणीय, = अन्वयार्थ जम्ब्वाख्ये भरत क्षेत्रमध्यगा कौशाम्बी = लौशाही नगरी (आसीत् = थी), तत्र = उसमें वातसेनाभिधः वातसेन नामक प्रबोधवान् = ज्ञानवान्, श्रेष्ठी सेठ ( अवसत् = रहता था ), तस्य उसकी. शुभसेना = शुभसेना नामक सुधर्मिणी धर्मपत्नी - ( आसीत् = थी) तयोः = उन दोनों के. समुद्रदत्ताख्यः समुद्रदत्त नामक, अभाग्यवान् = भाग्यहीन, तनयः अभूत् = हुआ । श्लोकार्थ - जम्बू नामक महान् द्वीपे में भरत के अन्दर एक रमणीय कौशाम्बी नगरी थी। उस नगर में वालसेन नामक एक ज्ञानी सेठ रहता था उसकी धर्मपत्नी शुभसेना थी । उन दोनों के एक भाग्यहीन समुद्रदत्त नामक पुत्र हुआ । महादारिद्रयपात्रं स जातमात्रो त्रऽपञ्चताम् । एतस्य पितरौ यातौ बुभोजादौ दरिद्रताम् ||६२अ || अन्वयार्थ - अत्र = जन्म होने पर एतस्य = उस पुत्र के पितरौ माता-पिता, पञ्चताम् = मृत्यु को, यातौ = प्राप्त हुये, जातमात्रः- = मात्र जन्म लेने वाला, सः = वह, 'महादारिद्र्यपात्र = अत्यधिक दरिद्रता का पात्र, (अभवत् = हुआ), आदौ = बाल्यकाल में दरिद्रतां गरीबी को, बुभोज बुभोज = भोगा श्लोकार्थ जन्म होने पर ही उस पुत्र के माता पिता मृत्यु को प्राप्त हो = · | गये इस प्रकार मात्र जन्म लेने वाला वह अत्यधिक दरिद्रता का पात्र हो गया उसने बाल अवस्था में दरिद्रता गरीबी को ही भोगा । - 7 = श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य - एकदा मुनिमेकं स भाग्यतः समुद्रदत्तो दुःखाभिभूतो = परिषस्वजि । भाग्यविवर्जितः ||६३ ।। = = पुत्र,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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