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________________ त्रयोदशः 3७६ = इस संख्या में, उक्ताः = कहे गये, मुनयः = मुनिराज, तस्मात् = उसी, कूटात् = कूट से, ध्रुवां = अचल, सिद्धि = सिद्धि को. गताः = प्राप्त हुये।। श्लोकार्थ - अनंतनाथ भगवान् के मोक्ष चले जाने के बाद नब्बे कोडा कोड़ी सत्तर करोड सत्तर लाख सात हजार सात सौ मुनिराज उसी स्वयंभूकूट से अचल-शाश्वत सिद्धि को प्राप्त हुये। तेषामन्वभवदाजा यारूसेनः सुधार्मिकः । सङ्घ संचालयामास यात्रायै भूपतिरसौ ।।५८|| अन्ययार्थ - तेषां = उनके, अनु = पश्चात् = सुधार्मिकः = धर्मात्मा, राजा = राजा. चारूसेनः = चारूसेन, अभवत् = हुआ, असौ = उस. भूपतिः = राजा ने, यात्रायै = यात्रा करने के लिये, संघं = संघ को, संचालयामास = चलाया। श्लोकार्थ · उनके पश्चात् एक चारूसेन नामक धर्मात्मा राजा हुआ । उस राजा ने सम्मेदशिखर की यात्रा के लिये संघ को संचालित किया था। तत्कथां अवणात्पुण्यवर्धिनां शिवदायिनीम् । वक्ष्ये भव्यजनास्सर्वे शृणुध्वं धर्मवत्सलाः ।।६०।। अन्ययार्थ - श्रवणात् = सुनने से, पुण्यवर्धिनी = पुण्य को बढ़ाने वाली, (च = और), शिवदायिनी = मोक्ष देने वाली, (च = और), तत्कथां = उस यात्रा की कथा को, (अहं = मैं कवि), वक्ष्ये = कहता हूं, सर्वे = समी, धर्मवत्सलाः - धर्मस्नेही, भव्यजनाः = भव्यजनो ! शृणुध्वं = सुनो। सुनो। , श्लोकार्थ - जिसके सुनने से पुण्य वृद्धिंगत होता है और जो मोक्ष देने वाली है ऐसी उस राजा द्वारा की गयी यात्रा की कथा को मैं कहता हूं। हे भव्यजनों ! तुम सभी धर्मस्नेही होकर उसे सुनो। जम्बाख्ये महति द्वीपे भरतक्षेत्रमध्यगा। कौशाम्बी नगरी रम्या सत्र श्रेष्ठी प्रबोधवान् ।।६१।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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