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श्री सम्मेदशिखर माहात्य = कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन, योगवित्तमः = योगविद्, तपोनिधिः = उन तपोनिधि भगवान ने, षट्सहसमुनीश्वरैः = छह हजार मुनिराजों के, साधू = साथ, कायोत्सर्गविधानेन = कायोत्सर्ग के विधान से, शुक्लाख्यं = शुक्ल नामक, ध्यानं = ध्यान में, समारूत्य = लगकर, सर्वभव्यजनार्चितं = समी भव्य जनों द्वारा पूजित, निरामयं = सर्व आमयों अर्थात् रोगों
से रहित, मुक्तिपदं = मोक्षपद को, प्राप = पा लिया। श्लोकार्थ - माघकृष्णा द्वादशी के दिन योग के जानकारों में श्रेष्ठ उन
तपोनिधि भगवान् ने छह हजार मुनिराजों के साथ कायोत्सर्ग के विधान से शुक्ल-ध्यान में लगकर सभी भव्यों से पूजित
और रोगरहित मुक्तिपद को पा लिया। स्वयंभूकूटतस्सर्वे गता ये साधवः शिवम् ।
नैष्कर्मसिद्धिसन्दीप्तान् वन्दे तान् प्रतियासरम् ।।५।। अन्वयार्थ - ये = जो. सर्वे = सभी. साधवः = मुनिराज, स्वयंभूकूटात् =
स्वयंभूकूट से, शिवं = मोक्ष को, गताः = गये. तान् = उन, नैष्कर्मसिद्धिसन्दीप्तान : नैष्कर्मसिद्धि से प्रदीप्त अर्थात कान्ति सम्पन्न सभी सिद्धों को अहं = मैं), प्रतिवासरं = प्रत्येक दिन,
वन्दे = प्रणाम करता हूं। श्लोकार्थ - जो भी साधु स्वयंभूकूट से मोक्ष को गये. उन सभी सिद्ध
भगवन्तों को मैं प्रतिदिन प्रणाम करता हूं। तत्पश्चात्प्रणवत्युक्ताः कोटीनां कोटिरीरिताः। सप्तत्युक्ताः कोट्यश्च तथा सप्ततिलक्षकाः ।।५६।। सप्तयुक्तसहस्राणि तथा सप्तशतानि च ।
इत्युक्तारमुनयस्तस्मात् कूटासिद्धिं गता धुवम् ।।५७।। अन्ययार्थ - तत्पश्चात् = उसके बाद, अर्थात् अनंतनाथ भगवान् के मोक्ष
जाने के बाद, प्रणवत्युक्ताः = नब्बे, कोटीनां कोटिरीरिताः = कोड़ा कोड़ी, सप्तत्युक्ताः कोट्यः = सत्तर करोड़, तथा च = और, सप्ततिलक्षका: = सत्तर लाख, सप्तयुक्त सहस्राणि = सात हजार, तथा च = और, सप्तशतानि = साल सौ. इति