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________________ त्रयोदशः ३७०७ सर्वोपर्युदारधीः सभी जीवों पर समान बुद्धि रखने वाले, सः = वह, प्रभुः सर्वोपरि = भगवान्, तस्मिन् = उस समवसरण में, सबसे ऊपर, बभ्राज = सुशोभित हुये । श्लोकार्थ भव्यजीवों के समूहों द्वारा पूजित होते हुये, हजार सूर्यों के तेज से युक्त लगते हुये और सभी पर उदार बुद्धि रखने वाले वह प्रभु उस समवसरण में सबसे ऊपर सुशोभित हुये । जयसेनादयस्तत्र गणेन्द्राश्च तदादिभिः । यथोक्तैरखिलैर्भव्यैः स्तुतो द्वादशकोष्ठगैः ।। ५१ ।। दिव्यस्वनेन तत्त्वानां प्रकाशं व्यधात्प्रभुः । सम्मेदपर्यतं प्राप्य स्वयंभूकूटेऽयस्थितः ॥५२॥ - = - = अन्वयार्थ तत्र = उस समवसरण में, जयसेनादयः जयसेन आदि, गणेन्द्राः : (आसन) तदादिभिः = उनको आदि लेकर यथोक्तैः = जैसे कहे गये हैं वैसे, द्वादशकोष्ठगैः = बारह कोठों में स्थित, अखिलैः = सभी, भव्यैः = भव्य जीवों द्वारा, स्तुतः स्तुति किये जाते हुये, प्रभुः = भगवान् ने, दिव्यस्वनेन = दिव्यध्वनि द्वारा, तत्त्वानां = तत्त्वों के प्रकाश = प्रकाश को, किया, च = और, सम्मेदपर्वतं व्यधात् = सम्मेद शिखर पर्वत को प्राप्य = प्राप्त करके, स्वयंभूकूटे स्वयंभूकूट पर अवस्थितः = अवस्थित हो गये । = = श्लोकार्थ उस समवसरण में जयसेन आदि गणधर थे उनको आदि लेकर जैसे कहे गये हैं तदनुसार बारह कोठों में स्थित सभी भव्य जीवों द्वारा स्तुत होते हुये भगवान् ने दिव्यध्वनि से निखिल तत्त्वों का प्रकाश किया और सम्मेदशिखर पर्वत को प्राप्त करके स्वयंभूकूट पर अवस्थित हो गये । कृष्णद्वादशिकायां च भाघे मासि तपोनिधिः । कायोत्सर्गविधानेन षट्सहस्रमुनीश्वरैः || ५३11 सार्धं ध्यानं समारुह्य शुक्लाख्यं योगवित्तमः । निरामयं मुक्तिपदं प्राप सर्वभव्यजनार्चितम् ।। ५४ ।। अन्वयार्थ च = और, माघे = माघ, मासि मास में, कृष्णद्वादशिकायां
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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