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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ - अब मैं उस देव के अवतरण की कथा, जो सुनने में सुख
देने वाली, पाप को नष्ट करने वाली और महापुण्य को बढ़ाने वाली है, को कहता हूं। जम्बूद्वीपे पुण्यभूमौ क्षेत्रे भारत उत्तमे ।
कौशले विषयेऽयोध्या त्रिषु लोकेषु विश्रुता ||१६ ।। अन्वयार्थ - जम्बूद्वीपे = जम्बूद्वीप में, भारते = भरत, क्षेत्रे = क्षेत्र में,
पुण्यभूमौ = पूण्य भूमि पर, उत्तमे = उत्तम, कौशले = कौशल नामक, विषये = देश में, त्रिषु = तीनों, लोकेषु = लोकों में,
विश्रुता = विख्यात. अयोध्या = अयोध्या नगरी. (अस्ति = है)। श्लोकार्थ - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पुण्यभूमि पर स्थित कौशल नामक
उत्तम देश में अयोध्या नगरी है जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध
है।
तस्यामिक्ष्वाकुसवंशे काश्यपे गोत्र उज्ज्वले |
सिंहसेनोऽभयदाजा महापुण्यसरित्पतिः ।।१७।। अन्वयार्थ • तस्यां = उस अयोध्या में, इक्ष्वाकुसद्वशे = उत्तम इक्ष्वाकुवंश
में, उज्ज्वले = उज्ज्वल, काश्यपे = काश्यप, गोत्रे = गोत्र में, महापुण्यसरित्पतिः = महापुण्य का सागर समान स्वामी.
सिंहसेनः = सिंहसेन नामक राजा = राजा, अभवत् = हुआ। श्लोकार्थ - उस अयोध्या नगरी में उत्तम इक्ष्वाकुवंश में उज्ज्वल काश्यप
गोत्र में महापुण्य के स्वामी सिंहसेन राजा हुये थे। जयश्यामा तस्य राज्ञी राज्ञः ताराशशिप्रभा ।
महासुशीलसन्दीप्ता रूप सौभाग्यशालिनी ।।१८।। अन्वयार्थ - तस्य = उस, राज्ञः = राजा की, जयश्यामा = जयश्यामा
नामक, ताराशशिप्रभा = तारागणों में चन्द्रमा के समान प्रभा वाली, महासुशीलसन्दीप्ता = शीलव्रत रूप महान् व्रत का पालन करने के तेज से चमकने दमकने वाली, रूपसौभाग्यशालिनी = सौन्दर्य एवं अच्छे भाग्य से परिपूर्ण,
राज्ञी = रानी. (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ · उस राजा की जयश्यामा नामक रानी थी। जो तारामण्डल