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________________ ३६२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ - सुप्रसिद्ध धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व मेरू पर्वत पर स्थित एक महान् दुर्ग देश था। उसमें अरिष्टपुर नामक विशाल नगर था। तस्य पद्भरथो राजा गुणज्ञो गुणवान् स्ययं । महाप्रतापवानासीदनेकनृपसंस्तुतः।।४।। पूर्वजन्मोद्भवैः पुण्यैः राज्यं प्राप्य महानृपः । अकरोत् राज्यभोगं स देवेन्द्रसमवैभवम् ।।५।। अन्वयार्थ • तस्य = उस अरिष्टपुर का, पद्मरथः - पद्मरथ नामक, राजा = राजा, गुणज्ञः - गुणों का जानकार, स्वयं = स्वयं, गुणवान = गुणों का स्वामी, अनेकनृपसंस्तुतः = अनेक राजाओं द्वारा संस्तुत, महाप्रतापवान् = अत्यधिक पराक्रमी, आसीत् = था। सः - उस, महानृपः - महान् राजा ने, पूर्वजन्मोद्भवैः = पूर्वजन्म में अर्जित, पुण्यैः = पुण्यों से. देवेन्द्रसमवैभवं = देवेन्द्र के समान वैभव वाले, राज्यं = राज्य को प्राप्य = प्राप्त करके, राज्यभोगं = राज्य का भोग, अकरोत् किया। श्लोकार्थ - अरिष्टपुर नगर का राजा पद्मरथ महान् पराक्रमी, अनेक राजाओं से पूजित होता हुआ गुणों का जानकार एवं खुद भी गुणवान् था। अपने पूर्वजन्म में अर्जित पुण्य कर्म के कारण उसने देवेन्द्र के वैभव से समानता रखने वाले राज्य को प्राप्त करके उसका भोग किया। एकस्मिन्समये प्राप्तसतीर्थकर्तृस्वयंप्रभं । अभिवन्द्यार्थ्य तं राजा यतिधर्मान् स पृष्टवान् ||६|| अन्वयार्थ · एकस्मिन् = एक. समये = समय. सः = उस, राजा = राजा ने तीर्थकर्तृस्वयंप्रभं = तीर्थङ्कर स्वयंप्नभ को, प्राप्तः = प्राप्त, (मूत्वा = होकर), तं = उनको, अभिवन्द्य = प्रणाम करके, आर्य = पूजकर, यतिधर्मान् = मुनिधर्मों को, पृष्टवान् - पूछा। श्लोकार्थ - एक समय तीर्थकर स्वयंप्रभ के सामीप्य को प्राप्त करके
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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