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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
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अनन्तशक्ति
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पातकापहाम्
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वक्ष्येऽहं निर्मलश्लोकैः श्रुणुध्यं निर्मला जनाः । जम्बूद्वीपेऽत्र पूर्वेस्मिन् विदेहे प्रथिता नदी ।। ६२ ।। सीताख्या तंत्र देशोऽस्ति कच्छनामर्द्धिमो महान् । मनोरमा पुरी तत्र नाम्ना या विप्रकावती । ६३ ।। अन्वयार्थ – सम्मेदशैलस्य सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा यात्रा. (कृता की), असौ = वह राजा, अनन्तशक्तिः सम्पन्न, अभूत् = हो गया, श्रवणात् = सुनने से, पापों को नष्ट करने वाली, कर्णसुखदां = कानों को सुख = मैं देने वाली, तत्कथां = उस राजा की कथा को, अहं कवि, निर्मलश्लोकैः - निर्दोष श्लोकों से, वक्ष्ये = कहता हूं, निर्मला जनाः = निर्मल मन वाले लोगों ! शृणुध्वं = तुम उसे सुनो, अत्र = इस जम्बूद्वीपे = जम्बूद्वीप में, पूर्वेस्मिन् = पूर्व, = सीता नामक नदी विदेहे = विदेह क्षेत्र में, सीताख्या नदी, प्रथिता = प्रसिद्ध है, तत्र वहाँ, कच्छनाम = कच्छ नामक ऋद्धिमः ऋद्धि से पूर्ण, महान् = विशाल, देशः = = मनोहर देश, अस्ति है, तत्र = उस देश में, मनोरमा .- रमणीय, पुरी एक नगरी, (अस्ति = है), या = जो, नाम्ना विप्रकावती, प्रोक्ता कही गयी = नाम से, विप्रकावती
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है।
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श्लोकार्थ - सुप्रभ राजा ने सम्मेदशिखर की यात्रा की और वह अनन्तशक्ति युक्त हो गया। उस राजा की कथा, जिसके सुनने से पाप मिटते हैं और जो कानों को सुख देने वाली है, निर्मलश्लोकों से मैं उसे कहता हूं हे निर्मलचित वाले मनुष्यों तुम उसे सुनो - जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह क्षेत्र में सीता नामक एक सुप्रसिद्ध नदी है। वहाँ पर ही ऋद्धि से पूर्ण एक कच्छ नामक विशाल देश है। उस देश में विप्रकावती नामक मनोहर व रमणीय एक नगरी है।
तस्यां वैश्रवणो राजा बभूव सुकृती महान् । विजयन्ती तस्य राज्ञी शोभिता स्वीयसद्गुणैः ||६४ ||