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________________ द्वादश. तत्पश्चात् सप्ततिः प्रोक्ता कोट्यः षष्ट्युक्तलक्षकाः । षट्सहस्राणि सप्तैव शतानि कथितानि च ।। ५८ ।। द्विचत्वारिंशदित्युक्ता भव्या कूटात्ततः शुभात् । प्राप्तास्तपसा दग्धकल्मषाः । । ५६।। सुबन्धुमुनयः केवलज्ञानसम्पन्ना यात्रा तत्कथां ततः सुप्रमनाम्ना वै संघभक्तिः कृता कृता । । ६० ।। अन्वयार्थ -- तत्पश्चात् = तीर्थङ्कर विमलनाथ के मोक्ष जाने के बाद, सप्ततिः कोट्यः सत्तर करोड़, पट्युक्तलक्षकाः = साठ लाख, षट्सहस्राणि = छह हजार सप्त शतानि = सात सौ, कथितानि - कहे गये, च = और, द्विचत्वारिंशत् = बयालीस, इति = इस प्रकार, उक्ताः = कहे गये, तपसा = तप से, दग्धकल्मषाः पापों या कर्मों को नष्ट करने वाले, भव्याः = भव्य, सुबन्धुमुनयः सुबन्धु मुनिराजों ने, घातिकर्मक्षयात् = घातिकर्म का क्षय होने से केवलज्ञानसम्पन्ना केवलज्ञान से सम्पन्न होते हुये परं प्राप्त हुये । = — उत्कृष्ट मोक्ष पद को प्राप्ताः 1 ततः = उसके बाद सुप्रभनाम्ना सुप्रभ नामक, (नृपेण राजा द्वारा), संघभक्तिः = संघों की भक्ति, कृता की गयी, ( तथा = तथा ), कृता = सम्मेदशिखर की यात्रा भी की। श्लोकार्थ - तीर्थकर विमलनाथ के मोक्ष जाने के बाद सात करोड साठ लाख छह हजार सात सौ बयालीस की संख्या में कहे गये भव्य व तप से कर्मों को दग्ध करने वाले सुबन्धु मुनिराजों ने घातिकर्म का क्षय होने से केवलज्ञान से सम्पन्न होते हुये परम पद निर्वाण को प्राप्त कर लिया । .... = घातिकर्मक्षयात्परम् । = = 코코 = सम्मेदशैलस्यानन्तशक्तिरभूदसौ । श्रवणात्पातकापहाम् । । ६१ ।। - आगे सुप्रभ नामक राजा ने संघ भक्ति की तथा सम्मेदशिखर की यात्रा की। कर्णसुखदां =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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