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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य राज्यभरालसः = राज्य के भार सहित, देवमानवसहितः = देवों और मानवों से पूजित सेवित होते हुये, विचित्रैः = अनेक प्रकार से. वस्त्ररत्नकः = रत्नजड़ित वस्त्रों को धारण किये, सः = उन, नीतिमान = न्याय और नीति को समझने वाला, देवः = राजा विमलनाथ ने, निर्विपक्षां = शत्रुओं से रहित, कृत्सनां = सारी, पृथिवीं = पृथ्वी को, च = और, सम्यक्त्वराज्य भोग = सम्यक्त्व के साथ राज्य के भोग को,
शशास :- शासन किया। श्लोकार्थ - पन्द्रह लाख वर्ष तक का इनका कुमारकाल व्यतीत हुआ, तब
शरीर की तरूणावस्था आने पर राजा कृतवर्मा ने इन्हें राज्य दे दिया। राज्यसिंहासन पर राज्य भार से युक्त होकर देवों और मनुष्यों से सेवा पूजा किये जाते हुये तथा रत्नखचित विविध वस्त्रों को धारण किये हुये नीति -न्याय के जानकार उन विमलनाथ राजा ने शत्रुविहीन सम्पूर्ण पृथ्वी का शासन
किया तथा सम्यक्त्व के साथ राज्य सम्पदा का भोग किया। तुषारपटलं वीक्ष्य विरक्तस्तत्क्षणादभूत् । दृष्टनष्टहिमानीच दृष्टनष्टमिदं जगत् 11४२।। विचार्य मोक्षसंसिद्धयै विरक्तो देहभोगतः । तदा लौकान्तिकाः देयाः स्वमागत्य जगत्पतिम् ।।४३।। प्रशस्य विविधैर्वाक्यैः मुदमापुस्तदीक्षणात् ।
सदेवः देवराजोऽपि प्रभोरन्तिकमागतः ।।४४।। अन्वयार्थ – (एकदा = एक दिन), तुषारपटलं = हिमपटल को, वीक्ष्य =
देखकर, तत्क्षणात् = उसी क्षण, विरक्तः = वैराग्यभाव को प्राप्त, अभूत् = हो गया, दृष्टनष्टहिमानीव = दिखाई देकर अर्थात् प्रत्यक्ष नष्ट होते हिम खण्डों के समान, इदं = यह, जगत् = संसार, दृष्टनष्टम् = दिखकर नष्ट होने वाला. (अस्ति = है), (इति = ऐसा), विचार्य = विचार करके. मोक्षसंसिद्धयै = मोक्ष की सिद्धि करने के लिये, देहभोगतः = शरीर और विषय मोगों से. विरक्त्तः = विरक्त, (अभूत = हुआ), तदा = तभी, लौकान्तिकाः = लौकान्तिक, देवाः =