SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वादशः उसी समय स्वर्ग का देव इन्द्र वहाँ आकर भगवान् को अपनी गोद में बिठाकर जय घोष करता हुआ मेरू पर्वत पर आ गया वहाँ उसने क्षीर सागर के दिव्य सुगंधित जल से परिपूर्ण स्वर्ण कलशों से बाल तीर्थयार का अभिषेक किया फिर रक्तिभाव से देवताओं सहित वह इन्द्र उन्हें दिव्य वस्त्राभूषणों से अलङ्कृत करके कम्पिला नगरी आ गया । वहाँ राजा के आँगन में देवोपनीत सिंहासन पर बाल प्रभु को स्थापित करके उन्हें प्रणाम करके, उनकी पूजा करके उनके सामने इन्द्र ने ताण्डव नृत्य किया तथा सभी अर्थों में विमलता के कारण उनका नामकरण विमलनाथ करके फिर माता की गोद में बालक को सौंपकर वह स्वर्ग चला गया। तीर्थकर वासुपूज्य के मोक्ष जाने के बाद तेतीस सागर के काल में जिनका जीवन भी शामिल है ऐसे विमलनाथ राजा के महल में सुशोभित हुये । इनके शरीर की ऊँचाई साठ धनुष प्रमाण तथा आयु साठ लाख वर्ष की थी। स्वर्ण के समान कान्तिमान, सौभाग्य के सागर, श्री शोभा से पूर्ण पूज्यनीय जगत्प्रभु विमलनाथ ने अपनी अनेक बालकीड़ाओं से माता -पिता को प्रसन्न किया। कुमारकालकं पंचदशलक्षोक्तवत्सरान् । व्यतीयुरस्याथ तनोः प्राप्ते तारूण्य उत्तमे ।।२६।। कृतवर्मा ददावस्मै राज्यं राज्यभरालसः । राजसिंहासने देवो देवमानवसेवितः ।।४०।। शशास पृथिवीं कृत्स्ना निर्विपक्षां स नीतिमान् । सम्यक्त्यराज्यभोगं च विचित्रैः वस्त्ररत्नकः ||४१।। अन्वयार्थ – पञ्चदशलक्षोक्तवत्सरान् = पन्द्रह लाख वर्ष पर्यन्त. अस्य - इनका, कुमारकालकं = कुमारकाल, व्यतीयुः = व्यतीत हुआ, अथ = फिर, तनोः = शरीर की, उत्तमे = उत्तम, तारूण्ये - तरुण अवस्था, प्राप्त = प्राप्त होने पर, कृतवर्मा = कृतवर्मा राजा ने, अस्मै = कुमार के लिये, राज्यं = राज्य को, ददौ - दे दिया. राज्यसिंहासने = राज्य सिंहासन पर,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy