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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य दिव्यगन्धयुक्त जल से, प्रपूर्णैः = भरे हुये, हेमकुम्भकैः = स्वर्णकलशों से, देव= तीर्थङ्कर शिशु का, अस्नापयत् = स्नान अभिषेक किया, ततः = उसके बाद, भक्त्या = भक्तिभाव से. मरः :- चला सहित, सः = वह, पुरुहूतः = इन्द्र, दिव्यैः = देवों पुनीत, आभरणैः = वस्त्राभूषणों से, तं = उन, बालं = शिशु. ईश्वरं = तीर्थङ्कर को. आवृत्य - अलङ्कृत करके, कम्पिलाम = कम्पिला नगरी को, अगमत् = चला गया, अथ -: फिर, नृपाङ्गणे = राजा के आंगन में, दिव्यपीठे = दिव्यपीठ पर, जगत्पतिं = जगत् के स्वामी प्रभु को, समारोप्य - विराजमान कर, नत्वा = उन्हें प्रणाम कर, संपूज्य = उनकी पूजा करके, सः - उस, देवेन्द्रः = देवेन्द्र ने, तस्य = उन प्रभु के. अग्रे = सामने, ताण्डवं = ताण्डव नृत्य को, व्यधात = किया, (च = और) सर्वार्थविमलत्वात् = सारे अर्थों में निर्मलता होने से, विमलाख्यां = विमल नाम को, विधाय = करके, मातुः = माता की, अङ्क = गोद में, प्रभुं = प्रभु को. कृत्वा = करके, असौ :- वह इन्द्र, देवालयं = स्वर्ग को, गतः = चला गया। वासुपूज्ये = तीर्थङ्कर वासुपूज्य के, मुक्तिंगते = मोक्ष चले जाने पर, त्रित्रिंशत्सागरोपरि = तेतीस सागर बीतने पर. तदभ्यन्तरजीवी = उसी काल में जिनका जीवन अन्तहिंत है, सः = वह, विमलः == विमलनाथ, नृपालये = राजा के महल में, अभात् = सुशोभित हुये। षष्ट्रिचापमितोत्सेधः = साठ धनुष प्रमाण ऊँची देह वाले, षष्टिलक्षाब्दजीवनः= साठ लाख वर्ष जीवन वाले, जाम्बूनदप्रभ: - स्वर्णकान्ति से पूर्ण, भाग्यसिन्धुः = सौभाग्य के सागर, श्रीमान् = शोभा सम्पन्न पूज्यनीय, जगत्प्रभुः = जगत् के स्वामी विमलनाथ ने, विविधैः = अनेक, बालचेष्टितैः = बालोचित केलियों से. पितरौ = माता -मिता को, मोदयामास
= प्रसन्न किया। श्लोकार्थ – रानी की गोद में धारण किये हुये प्रभु वैसे ही सुशोभित हुये
जैसे प्राची में सूर्य सुशोभित रहता है।
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