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एकादश
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श्लोकार्थ अत्यधिक कठोर तपश्चरण व्रत का परिपालन करने से जिनका तेज अर्थात् प्रभामण्डल बढ़ गया है और जिन्होंने सूक्ष्म ध्यान से सम्पूर्ण कर्मबन्ध समूह को दग्ध कर दिया है ऐसे श्रेयांसनाथ भगवान् जिस कूट से मोक्ष गये, वह कूट जो अनेक भव्य जीवों को मोक्ष का प्रदाता है, मुझे भी निरन्तर कल्याणकारक अर्थात् श्रेयस्कर होवे ।
[ इति दीक्षितब्रह्मदत्तविरचिते सम्मेदशैलमाहात्म्ये तीर्थङ्कर श्रेयोनाथवृतान्तसमन्वितं संकुलकूटयर्णनं नाम एकदशमोऽध्यायः समाप्तिङ्गतः । ]
(इस प्रकार दीक्षित ब्रह्मदत्त रचित सम्मेदशिखर माहात्म्य नामक काव्य में तीर्थङ्कर श्रेयांसनाथ के वृतान्त से पूर्ण संकुलकूट का वर्णन करने वाला ग्यारहवां अध्याय समाप्त हुआ । }