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________________ १३४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य वाले. सः = उसने, मुक्तिं - मोक्ष को, आप = प्राप्त कर लिया। मुनीश्वरैः = केवलज्ञानियों द्वारा, कोट्युक्तप्रोषधानां = एक करोड़ प्रोषधोपवासों का, यत्फलं = जो फल, प्रोक्तं = कहा गया है, तत्फलं = उस फल को, मर्त्यः = मनुष्य, संकुलेक्षणात् - संकुल कूट के दर्शन से, अनायासात् = विना किसी प्रयास के. लभेत् = प्राप्त कर लेवे, सर्वकूटानां = सारी कूटों की, वन्दनात् = वन्दना करने से. (यत् = जो) फलं = फल है, (तत् = उस फल को). कः = कौन, अनुव]त = वर्णित करे । श्लोकार्थ – राजा ने सम्मेदशिखर पर्वत पर जाकर संकुल नामक उस श्रेष्ट कूट को प्रणाम किया। फिर यह राजा एक करोड़ भव्यों के साथ नग्न दिगम्बर होकर दीक्षित हुआ तथा तपश्चरण से सारे कर्मों को दग्ध करने वाले उसने मुक्ति प्राप्त कर ली। एक करोड़ प्रोषधोपवासों का जो फल मुनिराजों ने कहा है उस फल को संकुलकूट के दर्शन से मनुष्य अनायास ही प्राप्त कर लेता है। तो सम्पूर्ण कूटों की वन्दना से प्राप्त होने वाले फल का वर्णन कौन कर सके? श्रेयान् यतः परमदुस्सहतीव्रतेजः। सूक्ष्मप्रदग्धनिखिलायतकर्मबन्धः ।। मोक्षं जगाम बहुभव्यशिय प्रदाता। श्रेयस्करो भयतु मे सततं स कूटः ।।८।। अन्ययार्थ – परमदुस्सहतीव्रतेजः = अत्यधिक दुस्सह अर्थात् कठोर या उग्र तपश्चरण से तीव्र हो गया है तेज जिनका ऐसे वह, सूक्ष्मप्रदग्धनिखिलायत कर्मबन्धः = सूक्ष्म ध्यान से जला दिया है सम्पूर्ण व्याप्त कर्म बन्ध को जिन्होंने ऐसे वह, श्रेयान् = श्रेयांसनाथ, यतः = जिस सकुल कूट से, मोक्ष = मोक्ष को, जगाम = गये, बहुभव्यशिवं = अनेक भव्य जीवों के लिये मोक्ष को. प्रदाता = देने वाला, सः = वह, कूटः = कूट, मे = मुझे, सततं = सदा, श्रेयस्करः = कल्याण करने वाला, भवतु = होवे।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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