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प्रथमा
सर्वलक्षणसम्पन्ना शीलादिगुणसंयुता। धर्मशीला शुद्धदेहा प्रियचेतोहरा गुणैः ।।५३।। अन्ययार्थ - तत्पुरस्य = उस राजगृह नगर का, रक्षकः = रक्षक. राजा
= राजा, श्रेणिकः = श्रेणिक. नाम = नामक, अभूत् = था, तस्य राज्ञी = उसकी रानी, चेलनाख्या = चेलना नाम वाली, (आसीत् = थी) (सा च = और वह), रूपयौवनशालिनी = रूप-सौन्दर्ग वं गैवन सम्पन्न थी, सर्वलक्षण सम्पन्ना सामुद्रिकशास्त्रोल्लिखित सभी योग्य लक्षणों से संयुक्त थीं, शीलादिगुणसंयुता = शील. संयम, विनय. सत्यभाषण आदि गुणों से युक्त थीं, धर्मशीला = धर्माचरण के में तत्पर थी, शुद्धदेहा = पावन देह वाली. गुणैः प्रियचेतोहरा = अपने गुणों
से प्रिय के मन को हरने वाली थी। श्लोकार्थ - उस राजगृह नगर का रक्षक राजा श्रेणिक था। उसकी रूप
सौन्दर्यवती, यौवन से परिपूर्ण, सुगठित शुभ लक्षणों से युक्त, शील, संयम, विनय, सत्यभाषण आदि सद्गुणों से युक्त, धर्मपालन में सावधान, पावन देह वाली और अपने सद्गुणों से प्रियतम के मन को हरण करने वाली चेलना नामक रानी
थी। यस्य राज्ञो यशः शुभं जगत्प्रथितमुत्तमम्।
ग्रन्थेषु कयिभिः सर्वैः स्ववाग्भिः समुदीरितम् ।।४।। अन्वयार्थ - यस्य राज्ञः = जिस राजा का, शुभं = उज्ज्वल, उत्तमम् =
उत्तम, जगत्प्रथितम् = विश्वप्रसिद्ध, यशः = कीर्ति, सर्वैः कविभिः = सभी कवियों द्वारा, स्ववाग्भिः = अपनी वाणी से, ग्रन्थेषु = ग्रन्थों में समुदीरितम् = अच्छी तरह से प्रतिपादित
किया है। श्लोकार्थ - जिस राजा का विश्व विख्यात, उज्ज्वल एवं उत्तम यश सभी
कवियों ने अपनी वाणी से ग्रन्थों में अच्छी तरह प्रशंसित किया