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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य येष्वाम्रधीजपूराद्या नानावृक्षाः स्म भान्ति वै ।
भूषिताः फलिताः कुञ्ज विहङ्गकुलशब्दिताः ।।५।। अन्वयार्थ · अखिलपण्डितैः = सभी विद्वानों द्वारा, तत्र = भरतक्षेत्र में.
मगधाख्यः = मगध नामक, देशः = देश. वर्ण्यते = वर्णन किया जाता है, यत्र = जिस मगध देश में. मनोहरणतत्पराः = मन को हरने में तत्पर, महारामाः = विशाल बगीचे, भान्ति (स्म) = सुशोगिल होते थे. येषु = उन सुन्दर विशाल बगीचों में, आम्रबीजपूराद्याः = आम, बिजौरा (बीजपूर) आदि, नानावृक्षाः = अनेक वृक्ष, फलिताः = फलों से लदे हुये, भूषिताः = विभूषित हो रहे, भान्ति स्म -- सुशोभित दिख रहे थे, कुञ्ज (च) = और लतामण्डपादि में, विहङ्गकुलशब्दिता = !
पक्षीकुलों के शब्द शब्दायमान, (आसन् = थे)। श्लोकार्थ - प्रायः सभी विद्वानों ने भरतक्षेत्र में मगध देश का वर्णन किया
है। मगध में मन को हरण करने में मानों तत्पर ही हों ऐसे बाग-बगीचे हैं. जो आम्र, बिजौरा आदि अनेक वृक्ष फलों से लदे हुये सुशोभित होते थे। उनके कुजों अर्थात् लतामण्डपों में भी पक्षी समूह की कलरव ध्वनि शब्दायमान होती थी। तस्मिन्देशे राजगृहं नामतः पुरमुत्तमम्।
द्वादशैर्नवभिस्तद्वयोजनलम्बितायतम्।।५१।। अन्वयार्थ - तस्मिन देशे = उस मगध देश में, द्वादशैः नवभिः योजनैः ।
लम्बितायतम् = बारह योजन लम्बा और नव योजन चौड़ा, उत्तम = उत्तम, पुरं = नगर, नामतः राजगृह = जो नाम से
राजगृह कहा जाता था। श्लोकार्थ - मगधदेश में बारह योजन लम्बा और नौ योजन चौड़ा एक
उत्तम नगर राजगृह था । श्रेणिको नाम राजाभूत्तत्पुरस्येव रक्षकः । चेलनाख्या तस्य राज्ञी रूपयौवनशालिनी ।।५२।।