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________________ r प्रथमा एकोनविंशतिकला योजनस्य च या कृताः । तास्वेव षट्कलाधिक्यं बोध्यं तेन ततः परम् ।।४८ ।। = = अन्ययार्थ तत्र = जम्बूद्वीप में, षट् कुलशैलाः = छह कुलाचल अर्थात् पर्वत, चतुदंश च = और चौदह, सरितः = नदियों, स्युः हों, द्वीपस्य = जम्बूद्वीप के शून्यरन्यैकभागैः एक सौ नब्बे भागों से गुणितैः क्रमात् एकभागेन षड्विंशात् अधिकैः पञ्चभिः शतैः षट्कलायुक्तैः योजनैः एक भाग लेकर पांच सौ छब्बीस एवं एक योजन में छह भाग अर्थात् छह कला सहित पांच सौ छब्बीस योजन, च और योजनस्य = योजन की, एकोनविंशतिकलाः = उन्नीस कलायें, याः = जो, कृताः = की गई हैं, तासु एव = उनमें ही, षट्कलाधिक्यं छह कलायें अधिक, बोध्यं = जानना चाहिये, तेन = इससे, अर्थात् ५२६ योजन परिमाण से परं प्रमितं = परम प्रमाण वाला, भरतं 1 = हर दृष्टि से पवित्र, क्षेत्रम् = भरत क्षेत्र, सर्वतः शुचि आख्यातम् : = कहा गया है, यत्र = जहाँ, अनुत्तमम् = अनुत्तम, कर्मस्थलम् = कर्मभूमि क्षेत्र (विद्यते = जहाँ शुभाशुभक्रमः = = शुभ एवं परिमाणों के क्रम वाला जीव, सुखितः और, भवति होता है) । - मगधाख्यस्तत्र भान्ति यत्र दुखी, (च श्लोकार्थ जम्बूद्वीप में छह कुलाचल पर्वत एवं चौदह नदियाँ हैं। इस जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र का परिमाण ५२६ अर्थात् पांच सौ छब्बीस गुणित छह भागित उन्नीस (पांच सौ छब्बीस सही छह बटे उन्नीस ) ५२६ / ६ / ६८ योजन बताया गया है। यह भरतक्षेत्र अनुत्तम कर्मभूमि है, तथा यहाँ जीव शुभ अशुभ कर्मोदय और परिणामों के वशीभूत होकर सुखी अथवा दुःखी होते हैं। = देशो महारामा = 1= " = है ) तथा और यत्र अशुभ कर्मोदय एवं सुखी, दुःखितः = = १६ वर्ण्यतेऽखिलपण्डितैः । मनोहरणतत्पराः ॥४६॥
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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