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श्री सम्मेदशिखर माहात्य बाला. (एकः = एक) महान् = बड़ा, जम्बूद्वीपः = जम्बूद्वीप, आस्ते = है, (यः = जो). सदा = हमेशा, साधुरत्नाकरः = साधु पुरूष रूपी रत्नों का भंडार अथवा खनिप्रदेश, (अस्ति = है), तन्मध्ये = उस जम्बूद्वीप के मध्य में, लक्षयोजनः = एक लाख योज, मा. .. स्चाई बाला, सुदर्शनः = सुदर्शन नामक मेरू, (वर्तते = है), तत्स्कन्धः च = और उसका स्कन्ध, दशसाहस्रयोजनैः = दश हजार योजन प्रमाण, भुवने = पृथ्वी में भीतर, स्थितः = स्थित, (विद्यते - है). असौ मेरू: = यह मेरू पर्वत, भूमेः = भूमि के, उपरि = ऊपर, नवतिसाहर्स = नब्बे हजार, योजनैः = योजन प्रमाण, तुङ्गता = ऊँचाई तक, गतः = गया है. तन्निकटस्थितैः = उसके समीप रहने वाले लोगों द्वारा, तद्वत् = केवलज्ञानियों गणधरों द्वारा बताये प्रमाण-परिमाण के समान (एव = ही) दृष्टः = देखा गया
(स्यात् = होगा)। श्लोकार्थ - मध्यलोक में पृथ्वीमंडल पर एक बहुत बड़ा, थाली के आकार
वाला गोल वृत्ताकार तथा एक लाख योजन विस्तार वाला जम्बूद्वीप है। यह सत्पुरूषों की खान है अर्थात् साधु-सज्जन पुरुषों का जन्म यहां होता रहता है। इस जम्बूद्वीप के बीचोंबीच एक लाख योजन ऊँचा सुदर्शन मेरू है जो दश हजार योजन भूमि के भीतर तथा नब्बे हजार योजन भूमि के ऊपर बताया गया है। कवि कहता है कि उसके निकटवर्ती जनों द्वारा उपर्युक्त मेरू केवलीनिर्दिष्ट और गणधरादिप्रणीत
परिमाण के समान देखा गया होगा। षट् तत्र कुलशैलाः स्युस्सरितश्च चतुर्दश । शून्यरन्धैकभागैश्च, द्वीपस्य गुणितैः क्रमात् ।।४५।। एकभागेन षड्विशादधिकैः पञ्चभिः शतैः । योजनैः षट्कलायुक्तैः प्रमितं सर्वतः शुचिः ।।४६।। भरतं क्षेत्रमाख्यातं कर्मस्थलमनुत्तमम् । शुभाशुभक्रमो यत्र सुखितो दुःखितस्तथा ।।४७।।