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________________ एकादशः ३२६ आयुर्मासावशिष्टत्वं ज्ञात्वा संहृत्य तानम् । सम्मेदपर्वतं प्राप सहनमुनिसंयुतः ।।६।। तत्र संकुलकूटेऽसौ स्थित्वा भासावधिः प्रभुः । महायोगसमारूढो सर्वकर्मक्षयंकरः ।।६३।। प्रतिमायोगमास्थाय आवणे पौर्णिमातिथौ । साधकैर्मुनिभिः सार्धं सुखं सिद्धालयं गतः ।।६४।। अन्वयार्थ - सहस्रमुनिसंयुतः = एक हजार मुनियों से युक्त प्रभु, आयुर्मासावशिष्टत्वं - आयु की एक मास अवशिष्टता को, ज्ञात्वा = जानकर, तदध्वनि = दिव्यध्वनि को, संहृत्य = समेटकर, सम्मेदपर्वतं = सम्मेदपर्वत को, प्राप = प्राप्त हो गये, तत्र = वहाँ, संकुलकूटे = संकुलकूट पर, स्थित्वा = ठहरकर, असौ = वह, महायोगसमारूढः = महायोग में आरूढ़, सर्वकर्मक्षयंकरः = सारे कमों का क्षय करने वाले, मासावधिः = एक माह तक ठहरे हुये, प्रभुः = भगवान्, श्रावणे = श्रावण मास में. पूर्णिमातिथौ = पूर्णिमा तिथि में, प्रतिमायोगमास्थाय = प्रतिमायोग को धारण करके. साधकैः = साधक, मुनिभिः = मुनियों के, सार्ध = साथ. सुखं = सुख स्वरूप, सिद्धालयं = सिद्धशिला पर, गतः = चले गये। श्लोकार्थ – एक हजार मुनियों से युक्त प्रभु एक माह आयु शेष रहने पर दिव्य ध्वनि को रोककर सम्मेदपर्वत पर चले गये। वहाँ संकुलकूट पर स्थित होकर एक माह की संसारावधि वाले, महान् योग में संलग्न और सारे कर्मों का क्षय करने वाले उन श्रेयांसनाथ भगवान् ने प्रतिमायोग लगाकर साधक मुनिराजों के साथ श्रावण पूर्णिमा को सुखमय सिद्धालय को चले गये। षण्णवत्युक्त्तकोटीनां कोट्यस्तावन्त्य एव च । कोट्यस्षण्णवत्युक्ता लक्षोक्तनवतिकार्द्धकम् ।।६५।। सहस्राणि तथा पञ्च शतानि तदनन्तरम् । द्विचत्वारिंशतिश्चैवं गणिताः मुनिनायकाः ।।६६॥
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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