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श्लोकार्थ
अन्वयार्थ
श्लोकार्थ
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श्लोकार्थ
करके दीक्षाविधानेन
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= एक हजार, भूपैः = राजाओं के सार्धं मुक्ति के लिये कारणभूत, जैर्नी प्रशंसनीय मुनिदीक्षा को जग्राह
.
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सिद्धार्थं स द्वितीयेऽनि भिक्षायै गतवान्पुरम् । नन्दिषेणाभिधो राजा तस्मै सभोजनं ददौ । । ५४ । । सः वह मुनिराज, द्वितीये = दूसरे, अनि आहार के लिये सिद्धार्थ सिद्धार्थ, पुरं गतवान् = गया. (तत्र - वहाँ), नन्दिषेणाभिधः नामक, राजा ने, तस्मै सात्विक भोजन ददौ
उनके लिये, सभोजनं
दिया |
वह मुनिराज दूसरे दिन आहार लेने के लिये सिद्धार्थ नगर गये वहाँ राजा नंदिषेण ने उनके लिये सात्विक भोजन प्रदान किया ।
अन्वयार्थ - पुनः
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
दीक्षा लेने की विधि से सहस्रप्रमितैः
साथ. मुक्तिनिदानां जैनेश्वरी, सद्दीक्षां ग्रहण कर लिया।
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उस सहेतुकवन में फाल्गुन कृष्णा ग्यारस के दिन श्रावणनक्षत्र में अधिज्ञान के स्वामी तत्त्वज्ञानी प्रभु ने सिद्धों को नमस्कार करके दीक्षा ग्रहण करने की रीति से एक हजार राजाओं के साथ मुक्ति के लिये कारण प्रशंसनीय जैनेश्वरी मुनिदीक्षा को ग्रहण कर लिया ।
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दिन, भिक्षायै
नगर को, नन्दिषेण
= अच्छा
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द्विवर्षावधिमौनभाक् ।
पुनर्वनं समासाद्य नानाशुचिप्रदेशेषु तपश्चक्रे सुदारुणम् ।।५५ ।। पश्चात् वनं = वन को, समासाद्य = प्राप्त करके, द्विवर्षावधिमौनभाक् = दो वर्ष पर्यन्त तक मौन धारण करने वाले उन मुनिराज ने नानाशुचिप्रदेशेषु = अनेक पवित्र स्थानों पर, सुदारुणं - कठोरतम तमः = तपश्चरण को, चक्रे = किया।
फिर उसके बाद वन में आकर दो वर्ष तक मौन व्रत धारण करने वाले उन मुनिराज ने अनेक पवित्र स्थानों में भीषणकाल कठोर तपश्चरण किया ।