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________________ ३१८ श्री सम्मेदशिखर माहात्य तदैवावधितो शक्रो ज्ञात्याऽऽयतरं प्रभोः । जयेत्युच्चार्य सहसा स देवस्तत्र चागमत् ।।२६ ।। अन्वयार्थ - तदैव = तब ही, अवधितः = गवधिज्ञान से. प्रभोः = भगवान का, अवतरं = आगमन-जन्म. ज्ञात्वा = जानकर, च = और, जय = जय हो, इति = ऐसा, उच्चार्य = कहकर, सहसा = अचानक, उतावलीपूर्वक, सः = वह, देवः = इन्द्र, तत्र = वहाँ, आगमत् = आ गया। श्लोकार्थ - तभी अपने अवधिज्ञान से प्रभु का जन्म हो गया है ऐसा जानकर और जय हो ऐसा उच्चारण करके वह इन्द्र उतावलीपूर्वक वहाँ आ गया। ततः प्रभुं समादाय सादरं भक्तिनम्रधीः । विमाने स्वाङ्कगं कृत्या गतः स्वर्णाचलं मुदा ।।३०।। शिलायां पाण्डुकाख्यायां ततस्संस्थाप्य तं प्रभु । चक्रे घटाभिषेकं स क्षीरोदधिजलैश्शुभैः ।।३१11 अन्वयार्थ – ततः = उसके बाद, भक्तिनम्रधीः = भक्ति से विनम्र बुद्धि वह इन्द्र, प्रभु - प्रभु को, सादरं = आदर सहित, समादाय = लेकर, (च = और), विमाने = विमान में, स्वाङ्कगं = अपनी गोद में स्थित, कृत्वा = करके, मुदा = प्रसन्नता से, स्वर्णाचलं = सुमेरू पर्वत पर, गतः = गया, ततः = उसके बाद, सः = उस इन्द्र ने, पाण्डुकाख्यायां = पाण्डुक नामक, शिलायां = शिला पर. तं = उन, प्रभुं = भगवान को, संस्थाप्य - स्थापित करके, शुभैः = सुन्दर, क्षीरोदधिजलैः = क्षीर सागर के जल से, घटाभिषेकं = घटाभिषेक, चक्रे = किया। श्लोकार्थ – भक्ति से विननं बुद्धि इन्द्र प्रभु को आदर सहित लेकर तथा विमान में उन्हें अपनी गोद में बिठाकर प्रसन्नता से मेरू पर्वत पर गया। वहाँ पाण्डुक शिला पर प्रभु को स्थापित करे क्षीरसागर के जल से भरे घटों द्वारा उनका अभिषेक किया। पुनर्गन्धोदकस्नानं समाप्य विधियन्मुदा । दिव्यैराभरणैर्देवं समाभूषयदद्भुतैः ।।३२|| ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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