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________________ एकादश: 39 - = = आश्चर्यपूर्ण चमत्कारिक, फलं फल को शुन्वा = सुनकर, दैवतम् = देव से तीर्थकर के रूप में आये जीव को, गर्भे गर्भ में, सन्धार्य: = धारण करके, देवी = वह रानी, मन्दिर महल में, महासुकृतभूः इव महापुण्यों की भूमि के समान, रराज = सुशोभित होने लगी। । = = - श्लोकार्थ – तभी स्वच्छ जल से केश पर्यन्त अपने मुख को धोकर वह रानी पति के पास गयी और स्वप्नविषयक फल को ध्यान से सुनने लगी । स्वप्नों के फल को सुनकर तथा तीर्थङ्कर बालक को गर्म में धारण कर वह रानी महा पुण्यों की भूमि के समान महल में सुशोभित हुई । दशमे मासि फाल्गुणकृष्णैकादश्यां चोत्तमे । भूपगृहे जनिं लेभे सोऽयं तेजसां निधिः ।। २७ ।। अन्वयार्थ = च = और दशमे दसवाँ मासि = माह होने पर, फाल्गुणकृष्णैकादश्यां फाल्गुण कृष्ण एकादशी के दिन, उत्तमे = उत्तम. भूपगृहे = राजा के घर में, सः उस, तेजसां = तेजों का, निधिः पुञ्ज स्वरूप, अयं = इस बालक ने, जनि = जन्म, लेभे = प्राप्त किया। = श्लोकार्थ - गर्भकाल पूरा होने से दसवाँ माह आने पर फाल्गुन कृष्णा ग्यारस के दिन तेजोनिधि इस बालक ने राजा के उत्तम गृह में जन्म प्राप्त किया । त्रिज्ञानलोचनोदद्भासी = शुभलक्षणदीपितः । तपोनिधिः प्रसन्नात्मा भ्राजते स्म रविर्यथा ||२८|| अन्वयार्थ – शुभलक्षणदीपितः = शुभलक्षणों से सुशोभित, त्रिज्ञानलोचनोद्भासी तीन ज्ञान रूपी नेत्रों से जानने वाले, प्रसन्नात्मा = प्रसन्न स्वरूप वाले, तपोनिधिः तपोनिधि प्रभु, (तथैव = वैसे ही), भ्राजते स्म = शोभायमान हुये, यथा - जैसे, रविः = सूर्य । = श्लोकार्थ -- शुभलक्षणों से सुशोभित, तीन ज्ञान अर्थात् मति श्रुत और अवधिज्ञान रूपी नेत्रों से जानने वाले प्रसन्नता से परिपूर्ण, तपोनिधि प्रभु वैसे ही प्रकाशमान हुये जैसे रवि होता है। IE
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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