SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य तस्मात्कूटाच्छियं याताः तदन्यविथलो नृपः । चालयामास सत्सचं शीतलानन्तरं महत् ।।५।। अन्वयार्थ – अष्टादशोक्तकोटीना कोट्युक्तः = अठारह कोड़ा- कोड़ी, तद्वतः परम् = उसके बाद, द्विचत्वारिंशदुक्ताश्च कोट्यः = और बयालीस करोड़, द्वात्रिंशदीरिताः लक्षाः = बत्तीस लाख, तद्वत् = वैसे ही आगे,चत्वारिंशत्सहस्राणि = बयालीस हजार, अतः परं = इससे आगे, शतानि नव = नौ सौ. पञ्च = पाँच, इति = इस प्रकार, संख्योक्ताः = संख्या में कहे गये, तापसाः= तपस्वी मुनि, गिरौ = सम्मेदशिखर पर्वत पर, तस्मात् = उसी विद्युतर नामक. कटात् = कट से, शिवं = मोक्ष को, याताः = गये, शीत लानन्तरं = शीतलनाथ भगवान के मोक्ष जाने के बाद, तदनु = उनके ही पीछे, अविचलः = अविचल नामक, नृपः = राजा ने, महत् = विशाल, सत्संघ = चतुर्विध संघ को, चालयामास = चलाया। श्लोकार्थ – अठारह कोडा-कोड़ी, बयालीस करोड़, बत्तीस लाख, बयालीस हजार नौ सौ पांच की संख्या से कहे गये तपस्वी मुनि भी सम्मेदशिखर की इसी विद्युतर कूट से मोक्ष गये । तीर्थङ्कर शीतलनाथ के मोक्ष पाने के बाद अविचल नामक राजा ने विशाल चतुर्विधसंघ को चलाया। भद्राभिधे पुरे धीमान् देशे मलयसंज्ञके । अभून्मेघरथो राजा धर्मकर्मपराणः ।।५१।। अन्वयार्थ - मलयसंज्ञके = मलय नामक, देशे = देश में, भद्रामिधे = भद्र नामक, पुरे = नगर में, धर्मकर्मपरायणः = धर्म और कर्म करने में तत्पर. धीमान् = बुद्धिमान, राजा = राजा, मेघरथ, अमूत् ___ = हुआ था। श्लोकार्थ – मलयदेश के भद्रपुर में एक बुद्धिमान और धर्म एवं कर्म करने में चतुर राजा मेघरथ राज्य करता था। एकस्मिन्समये सिंहासनस्थे बलवारिधिः। पप्रच्छ मन्त्रिणः श्रेयान् किं दानं हि महाफलम् ।।५२।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy