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श्लोकार्थ
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
जयनिर्घोषणं = जय जय की घोषणा को. कुर्वन् = करता = प्रसन्नता से स्वर्यात्रा स्वर्ग की यात्रा, व्यधात्
बार-बार प्रभु की स्तुति करके और माता की गोद में बालक प्रभु को रखकर जयघोष का उच्चारण करते हुये उस सुरेन्द्र ने स्वर्ग की यात्रा की अर्थात् स्वर्ग चला गया।
पुष्पदन्ताद् गते काले नवकोट्यब्धिसम्मि शीतलाख्योऽभवन्नाथः तदभ्यन्तरजीवनः ||३१||
अन्वयार्थ- पुष्पदन्ताद तीर्थकर पुष्पदन्त से नवकोट्यब्धिसम्मिते = नौ करोड सागर के बराबर, काले = काल, गते बीत जाने पर, तदभ्यन्तरजीवनः = उस उक्त काल के भीतर ही जिनका जीवन है ऐसे वह, शीतलाख्यः नाथः = शीतलनाथ, अभवत् हुये थे ।
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श्लोकार्थ - तीर्थङ्कर पुष्पदंत के निर्वाण काल से नौ करोड़ सागर के बराबर काल बीत जाने पर इस काल में ही गर्भित जीवन वाले शीतलनाथ हुये थे ।
स एकलक्षपूर्वायुः धनुर्नवतिदेहभृत् । कुमारकालं क्रीडाभिर्यथोक्तं च व्यतीतथान् ||३२||
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अन्वयार्थ एक लक्षपूर्वायु एक लाख पूर्व की आयु वाले, च = और, धनुर्नवतिदेहभृत् = नब्बेधनुष प्रमाण देह वाले, सः शीतलनाथ ने यथोक्तं = जैसा कहा गया है उतना,
उन
कुमारकालं
कुमारावस्था के समय को क्रीडाभिः = क्रीड़ाओं द्वारा व्यतीतवान् = व्यतीत कर दिया ।
श्लोकार्थ एक लाख पूर्व की आयु वाले और नब्बे धनुषप्रमाण शरीर धारण करने वाले शीतलनाथ ने शास्त्रोक्त कुमार काल अर्थात् कुमारावस्था का समय बाल्यक्रीड़ाओं के साथ व्यतीत कर दिया।
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हुआ, मुदा की ।
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तारूण्ये पैतृकं राज्यं संप्राप्य हि रराज सः । शत्रूणां गर्वहृद्देवो मित्राणां सुखवर्धनः ||३३||