________________
२६५
दशमः
श्लोकार्थ वहाँ पाण्डुकशिला पर उस इन्द्र ने क्षीरोदधि के जल से भरे हुये स्वर्ण निर्मित कलशों से तीर्थड़कर बालक का अभिषेक किया।
अभिषिच्याथ संभूष्य दिव्यैराभरणैः प्रभुम् । स तमनयत्पुनर्भद्रपुरे राजगृहं
·
अन्वयार्थ – अभिषिच्य = अभिषेक करके, अथ = और, दिव्यैः = दिव्य, आभरणैः = वस्त्र आभूषण से प्रभु भगवान को संभूष्य = अलङ्कृत करके, सः वह इन्द्र तम् उस तीर्थकर शिशु को पुनः = फिर से, भद्रपुरे भद्रपुर में, राजगृहं प्रति = राजभवन की ओर आनयत् = ले आया।
=
श्लोकार्थ · अभिषेक करके और प्रभु को दिव्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करके वह इन्द्र भगवान् को पुनः भद्रपुर में राजभवन तक ले
आया ।
अन्वयार्थ
=
=
तत्र संपूज्य भक्त्या तं तदग्रेऽद्भुतताण्डवम् । विधाय तस्य देवस्य शीतलाख्यां चकार सः ||२६|| तत्र = उस राजभवन में तं = शिशु तीर्थंकर को, भक्त्या = भक्ति पूर्वक संपूज्य पूजकर, तदग्रे = उनके आगे, अद्भुतं चमत्कारिक, ताण्डवम् = ताण्डव नृत्य को, विधाय : करके, सः -- उस इन्द्र ने, तस्य = उन, देवस्य = तीर्थङ्कर शिशु का, शीतलाख्यां - शीतल नाथ नाम, चकार = किया। श्लोकार्थ उस राजभवन में तीर्थङ्कर शिशु की भक्ति भाव से पूजा करके और उसके आगे चमत्कारिक ताण्डव नृत्य ने उनका नाम शीतलनाथ कर दिया । स्तुत्वा मुहुः सुरेन्द्रस्तं मातुरके विधाय च । जयनिर्घोषणं कुर्वन् स स्वर्यात्रां मुदा व्यधात् ||३०|| और, नं
करके इन्द्र
=
—
अन्वयार्थ
प्रति ||२६||
1
=
=
स्तुति करके, च = = बार बार स्तुत्वा = मुहुः = माता की गोद में, उन तीर्थङ्कर शिशु को मातुरके निधाय = रखकर सः = उस, सुरेन्द्रः
सुरेन्द्र ने.
=