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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य जैसे चन्द्रमा उदय होने पर समुद्र में लहरों की गतिशीलता से वृद्धि होती है वैसे ही प्रभु का जन्म होने पर रानी में प्रसन्नता
की वृद्धि हुई। प्रवृदयावधितस्तस्य प्राभवं विश्वमोदकम् ।
सौधर्मेशस्तदा देवैस्साधं तत्राभ्युपाययौ ।।२५।। अन्वयार्थ - तदा = तभी, सौधर्मेशः - सौधर्म इन्द्र, अवधित: - अवधिज्ञान
से, विश्वमोदकं = सभी को प्रसन्न करने वाला, तस्य = उन प्रभु का, प्राभव = जन्म को, प्रबुद्धय = जानकर, देवैः = देवताओं के, सार्ध = साथ, तत्र = उस भद्र पुर नगर में,
अभ्युपाययौ = अभ्युत्थान की भावना से आया। श्लोकार्थ – तभी जगत् को मोदकारी भी प्रसन्न करने वाला
भगवान का जन्म हो गया है- यह अवधिज्ञान से जानकर
सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र देवों के साथ वहाँ आ गया। तं समादाय देवेन्द्रः सादरं श्रीपतिं प्रभुम् ।
बालरूपं गतो मेरूं जयशब्दं समुच्चरन् ।।२६।। अन्वयार्थ - देवेन्द्रः = देवों का स्वामी इन्द्र, तं = उन, श्रीपतिं = लक्ष्मीपति,
बालरूप = शिशुस्वरूप, प्रभुं = प्रभु को, समादाय = लेकर, जयशब्दं = जय-जयकार के शब्द, समुच्चरन् = उच्चारित
करता हुआ, मेरू = मेरू पर्वत पर. गतः = गया। श्लोकार्थ – इन्द्र बाल स्वरूप कान्ति शोभा या लक्ष्मी के स्वामी उन
भगवान् को लेकर जयघोष करता हुआ मेरू पर्वत पर गया। तत्राभिषेकमकरोत् पूर्णेः क्षीरोदवारिभिः ।
कलशैर्हेमरचितैः . देवदेवस्य सादरम् ।।२७।। अन्वयार्थ - तत्रः = वहाँ पाण्डुकशिला पर, क्षीरोदवारिभिः = क्षीसागर
के जल से, पूर्णः = भरे हुये, हेमरचितैः = स्वर्णरचित, कलशैः = कलशों से, सादरं = आदर सहित. देवदेवस्य = देवों के भी देव तीर्थकर का, अभिषेकम् = अभिषेक, अकरोत् = किया।